Saturday, May 28, 2016

पियो न कोई पेग


लाल बहादुर नाम था जिनका
पी नहीं कभी उन्होंने लाल
काशी में पढ़नेवाले मित्रगण
पी रहे छक के लाल

पीना-पिलाना क्या बुरा है
जब कर चुके कक्षा पास
सारी उम्र निकल चुकी है
अब तो बुझा ले प्यास

मंदिर-मस्जिद-गिरजा देखे
देखे धर्म-कर्म के द्वार
ईश्वर-अल्लाह कहीं नहीं है
ये सब बातों का सार

इसीलिए तो ले कर बैठे
हम कुछ आज गिलास
हम भी पीएँ, तुम भी पियो
कर दें बोतल खलास

बात सही है
तर्क सही है
पर जीवन जीने की
यह रीत नहीं है

पीना-पिलाना तभी उचित है
जब कर चुको सारे काम
जितने भी ज़रूरतमंद है उनका
जब तुम कर सको नेक इंतॹाम

बचा-बचाकर कर कर दिया
देश का बुरा हाल
अपने ही हाथों से पी गए
देश को बर्फ़ में डाल

इससे सेहत बिगड़ी है
और परिवार का हुआ है सत्यानाश
गाड़ी चलाकर बच्चे मरते
माँ-बाप उठाते लाश

नहीं, नहीं, हरगिज़ नहीं
तुम कर सकते पीने का गुणगान
यह सिर्फ़ तबाही और तबाही
इसमें नहीं कोई शान

सोच समझ कर उत्सव मनाओ
टटोलो आत्म-विवेक
खाओ-पियो-ऐश करो
पर पियो न कोई पेग

भावनाओं की ये बात नहीं है
बात है लॉजिकल बात
तेश में आके ये मत कहना
लो जी कर लो बात

(लाल = red wine)
28 मई 2016
सिएटल | 425-445-0827



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