Friday, March 6, 2009

शीत लहर

बाहर है बीस
अंदर है सत्तर
दोनों के बीच है
एक शीशे का अंतर

कितनी है पास
कितनी है दूर
मेरे बगीचे की
उजली वो धूप

थर्मामीटर न होता
तो रखता बाहर कदम
ठंड से न यूँ
मैं जाता सहम

शीशों में क़ैद
गर्म हवा के बीच
कितना बदल जाता है
आदमी का व्यक्तित्व

और ऊपर से हो 'गर
एक बड़ा सा घर
दुनिया जिसे कहती हो
शुभ्र महल
फिर तो चमड़ी का
चाहे जैसा हो रंग
बदल ही जाता है
आदमी के सोचने का ढंग

खिड़की के बाहर
और खिड़की के अंदर
दोनों जहाँ में
बढ़ता जाता है अंतर

सिएटल । 425-445-0827
6 मार्च 2009

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1 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छी तस्‍वीर दिखायी सिएटल की ... अच्‍छी रचना।