जबसे वो कमाने लगे हैं
आँखें हमें दिखाने लगे हैं
गुरूर तो कुछ पहले भी था
अब धौंस भी जमाने लगे हैं
डर है कहीं बिगड़ जाए न वो
बनाने में जिसे ज़माने लगे हैं
अहसान जो किए थे हमने उनपे
धीरे-धीरे सब याद आने लगे हैं
वो फोन भी नहीं उठाते हमारा
हम नखरें उनके उठाने लगे हैं
घोलते थे सांसें सांसों में दो दिल
अब तकियों में मुँह छुपाने लगे हैं
कब तक करेगी फ़्रेम हिफ़ाज़त बिचारी
तस्वीरों से सब रंग अब जाने लगे हैं
सिएटल 425-445-0827
4 जून 2009
Thursday, June 4, 2009
जबसे वो कमाने लगे हैं
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:55 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: new, relationship
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4 comments:
क्या बात है राहुल जी। सुन्दर प्रस्तुति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
वाह ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
Rahulji,
Very nice.
sapana
Bahut hi badhia prastuti rahul.
shayad aapki pehli gazal rahi hogi ye...
aap kavita likhaa karte the..
aap gazal hi likhaa karen, gazal bahut achhi likhte hain aap..maza aa gaya padh ke
http://tanhaaiyan.blogspot.com
yogesh249@gmail.com
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