Monday, July 5, 2010

रचना में नहीं बसे रचयिता

दुल्हन वही जो पिया मन भाए
भाषा वही जो बात कह जाए
कविता वही जो दिल छू जाए
शब्द-शब्द से खुशबू आए


कभी हँसाए, कभी रूलाए
याद रहे, कभी भूल न पाए
सोते से जो तुम्हें जगाए
जीवन में परिवर्तन लाए


लिखने लगो तो न लिखी जाए
अपने-आप ही बनती जाए
कविता है इस सृष्टि जैसी
बिन रचे ही रचती जाए


रचना में नहीं बसे रचयिता
दुनिया फिर भी उसे ढूँढती जाए
दुनिया कितनी है नादां यारो
कविता छोड़ कवि पूजती जाए


सिएटल | 425-898-9325
5 जुलाई 2010

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TG


4 comments:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन रचना, कविता कोई ज़बरदस्ती वाली बात नहीं है ... जब निकलती है तो अपने आप, वरना कितनी भी कोशिश कर लो ... कुछ शब्द ही निकलेंगे, कविता नहीं ...

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

कविता है इस सृष्टि जैसी
बिन रचे ही रचती जाए

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj said...

कविता है इस सृष्टि जैसी
बिन रचे ही रचती जाए

avanti singh said...

बहुत ही प्यारी सहज और अर्थपूर्ण कविता ,लेखक को बधाई.........