दुल्हन वही जो पिया मन भाए
भाषा वही जो बात कह जाए
कविता वही जो दिल छू जाए
शब्द-शब्द से खुशबू आए
कभी हँसाए, कभी रूलाए
याद रहे, कभी भूल न पाए
सोते से जो तुम्हें जगाए
जीवन में परिवर्तन लाए
लिखने लगो तो न लिखी जाए
अपने-आप ही बनती जाए
कविता है इस सृष्टि जैसी
बिन रचे ही रचती जाए
रचना में नहीं बसे रचयिता
दुनिया फिर भी उसे ढूँढती जाए
दुनिया कितनी है नादां यारो
कविता छोड़ कवि पूजती जाए
सिएटल | 425-898-9325
5 जुलाई 2010
Monday, July 5, 2010
रचना में नहीं बसे रचयिता
Posted by Rahul Upadhyaya at 3:03 PM
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4 comments:
बेहतरीन रचना, कविता कोई ज़बरदस्ती वाली बात नहीं है ... जब निकलती है तो अपने आप, वरना कितनी भी कोशिश कर लो ... कुछ शब्द ही निकलेंगे, कविता नहीं ...
कविता है इस सृष्टि जैसी
बिन रचे ही रचती जाए
कविता है इस सृष्टि जैसी
बिन रचे ही रचती जाए
बहुत ही प्यारी सहज और अर्थपूर्ण कविता ,लेखक को बधाई.........
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