गली-गली में शोर है
नेता सारे चोर हैं
करने को हम कुछ नहीं करते
बस देते देश छोड़ है
आज मिला है एक सुअवसर हमको
आज हो रही भोर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है
करने को हम कुछ नहीं करते
बस देते देश छोड़ है
आज मिला है एक सुअवसर हमको
आज हो रही भोर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है
धरना-अनशन क्या कर लेगा
कहते कुछ मुँहजोर हैं
उनसे हमें हैं बस इतना कहना
यह शस्त्र बड़ा बेजोड़ है
गाँधी ने हमें दी आज़ादी
अब आया हमारा दौर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है
करने से ही कुछ होता यारो
क्यूँ ना करने की होड़ है
कर्म किए जा, कर्म किए जा
यहीं गीता का निचोड़ है
जब जब जनता एक हुई है
हुआ नतीजा पुरजोर है
फिर क्यूँ यारो हम हैं सोते
चलो लगाते जोर है
सिएटल, 7 अप्रैल 2011
सिएटल, 7 अप्रैल 2011
3 comments:
Aapne to kya keh dala.
Bahut hee laajawaab kavita bhet kee hai. Sadhuwaad!
"Dharanaa anshan kyaa kar legaa?..'
bilkul sahi faramyaa. ye 'neta-log' dharanaa-ahshan se thik hone wale nahi hai.
bahut hi laajawaab rachna.. badhai..
anilavtaar.blogspot.com
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