कहीं दूर जब पासपोर्ट बन जाए
जल्दी से उसमें वीसा लगाए
दूर-दराज के देश में जा के
कोई सपनों के दीप जलाए
कहीं तो ये दिल कभी जुड़ नहीं पाते
कहीं से निकल आए जन्मों के नाते
भली सी लड़की से ब्याह रचा के
ग्रीन-कार्ड की प्यास बुझाए
कहीं दूर जब...
कभी यूँहीं जब हुई ले-ऑफ़ की बातें
भर आई बैठे-बैठे बस यूँहीं आँखें
कहाँ पे आ के, फ़ंसे हम हाए
अधेड़ उम्र कुछ समझ न पाए
कहीं दूर जब...
कभी तो ये दिल कहे, चलो घर जाए
फिर कहे, अभी रूके, अभी और कमाए
कमा-कमा के बरस हैं गुज़रे
जाने की फिर भी न टिकट कटाए
कहीं दूर जब...
(योगेश से क्षमायाचना सहित)
जल्दी से उसमें वीसा लगाए
दूर-दराज के देश में जा के
कोई सपनों के दीप जलाए
कहीं तो ये दिल कभी जुड़ नहीं पाते
कहीं से निकल आए जन्मों के नाते
भली सी लड़की से ब्याह रचा के
ग्रीन-कार्ड की प्यास बुझाए
कहीं दूर जब...
कभी यूँहीं जब हुई ले-ऑफ़ की बातें
भर आई बैठे-बैठे बस यूँहीं आँखें
कहाँ पे आ के, फ़ंसे हम हाए
अधेड़ उम्र कुछ समझ न पाए
कहीं दूर जब...
कभी तो ये दिल कहे, चलो घर जाए
फिर कहे, अभी रूके, अभी और कमाए
कमा-कमा के बरस हैं गुज़रे
जाने की फिर भी न टिकट कटाए
कहीं दूर जब...
(योगेश से क्षमायाचना सहित)
4 comments:
bhai kavita to khoobsurat hai, dekhiyega ki kuchh logon ka dil n dukha de. poore nau ke nau rason men gai ja sakti hai ye kavita.
kya bat hai.....badhiya
GOOD
Behtareen peshkash...
www.gunchaa.blogspot.com
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