क्या बात है जो बात-बेबात बात करते हो तुम?
दिन तो दिन, रात-बेरात बात करते हो तुम
जानता हूँ, है गुनाह, फिर भी क्यों नहीं तुम्हें रोकता हूँ मैं?
जानता हूँ, है ख़्वाब, फिर भी क्यों नहीं इसे तोड़ता हूँ मैं?
तुम हो, तो तुम्हीं से हर साँस है मेरी
तुम हो, तो तुम्हीं से अर्दास है मेरी
क्या बात है जो बात-बेबात बात करते हो तुम?
दिन तो दिन, रात-बेरात बात करते हो तुम
जानता हूँ, है प्यार, फिर भी क्यों नहीं तुम्हें ...
दिल्ली । 88004-20323
14 मार्च 2012
Wednesday, March 14, 2012
क्या बात है जो बात-बेबात बात करते हो तुम?
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:05 AM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: intense
Tuesday, March 13, 2012
कर-कर के इंकलाब एन्क्लेव ही जोड़ पाए हैं
कर-कर के इंकलाब, एन्क्लेव ही जोड़ पाए हैं
छ: दशक के बाद भी अंग्रेज़ी कहाँ छोड़ पाए हैं
आपकी बात का क्या करेगा विश्वास कोई
जब आप ही अपनी बात को खुद न ओड़ पाए हैं
जब दिल हो और दिमाग हो, तो बात बिगड़ेगी ज़रूर
दिल और दिमाग की साँठ-गाँठ बिरले ही तोड़ पाए हैं
जो हो गया सो हो गया, आगे की सुध लीजिए
वक़्त की धार को बिड़ला भी न मोड़ पाए हैं
दिल्ली । 88004-20323
13 मार्च 2012
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:21 AM
आपका क्या कहना है??
1 पाठक ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: India
Friday, March 2, 2012
न घाट है न घर है
न घाट है न घर है, कहते महानगर हैं
तारों के जाल में तारें आते न नज़र हैं
बस्ती है कि जंगल, कहना मुश्किल है
आदमियों की खाल में बसते अजगर हैं
आदमी तो आदमी, देवता भी कमाल है
कालीनदार कमरों में दिखे भोले शंकर हैं
आप ही बताईए, ये ऐसी कैसी चाल है?
कि खाते-पीते घर के ही क्यूँ बनते अफ़सर हैं
कहने की बात है, घंटी कहाँ बजती है?
घर्घर रिंगटोन ही हम सुनते घर-घर हैं
राहुल उपाध्याय | 2 मार्च 2012 | दिल्ली
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:28 AM
आपका क्या कहना है??
2 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
Labels: CrowdPleaser