लाइट के लाल होते ही
स्क्रीन खुल जाती है
अंगुठा हिलने लगता है
और बिट्स और बाईट्स
उपर-नीचे
तैरने लग जाते हैं
बाहर की दुनिया
क्या सचमुच
इतनी नीरस और उबाऊ है
कि
हम अपने
चिर-परिचित
सीमित
दायरों में
रोमांच
खोजने
लग जाते हैं?
मेजबान की नज़र हटते ही
स्क्रीन खुल जाती है
अंगुठा हिलने लगता है
और बिट्स और बाईट्स
उपर-नीचे
तैरने लग जाते हैं
हमें
जीते-जागते इंसान को छोड़कर
उससे नज़रें बचा कर
265 दोस्तों का सर्कस देखना
ज्यादा अच्छा लगता है
सामने बैठे इंसान से
मुस्करा कर
दो बोल बोलने के बजाय
किसी दीवार पर
"LOL"
"fantastic"
"miss you"
"wish you were here"
लिखना
ज्यादा अच्छा लगता है
बिस्तर से सुबह उठते ही
स्क्रीन खुल जाती है
अंगुठा हिलने लगता है
और बिट्स और बाईट्स
उपर-नीचे
तैरने लग जाते हैं
क्या करें!
आदत पड़ जाती है
उम्र ढल जाती है
मॉडल बदल जाते हैं
प्लान बदल जाते हैं
एक नहीं, दो नहीं,
चार-चार स्मार्टफोन घर में हो जाते हैं
पहले ही कम बोलते थे
अब मरघट सा छा जाता है
घर में ही टेक्स्ट भेजे जाने लगते हैं
निगाहें झुक जाती हैं
सर लटक जाते हैं
और एक दिन
जब बैटरी चुक जाती है
चार्जर भी जवाब दे जाता है
सर जब उठता है
तो अकेलापन ही अकेलापन
नितांत अकेलापन ही नज़र आता है
7 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798