माँ के हाथ का खाना
माँ के घर जा कर भी नहीं मिलतावही छिलती है
वही काटती है
वही छौंकती है
वही पकाती है
वही गूँधती है
वही बेलती है
वही फुलाती है
वही चुपड़ती है
आर्थिक विकास का
यह मतलब तो नहीं
कि
बेटे के हाथ से
माँ की रोटी छिन जाए
घड़े की बजाय
आर-ओ से पानी आए
पेड़ की बजाय
खिड़की से
कार नज़र आए
4 comments:
बड़ों के हाथ के खाने की याद बहुत comforting होती है। जितना सुख हमें उनके हाथ का खाना खाने में मिलता है, उससे कई ज्यादा सुख उन्हें हमें खाना खिलाने में मिलता है। लेकिन उम्र के साथ माँ, दादी या नानी में रसोई संभालने की ताक़त कम होती जाती है - उन्हें जवान हाथों के सहारे की ज़रुरत पड़ती है, जो उनकी निगरानी में, उनकी बताई हुई विधि से खाना बनायें और घर की परम्परा को आगे बढ़ाएं। पर आजकल घर के लोग माँ से दूर रहते हैं या घर के बाहर काम करते हैं, इसलिए सहारा देने वाले जवान हाथ अक्सर काम वाली के ही मिलते हैं। यही बहुत है कि माँ को कोई सहारा देता है, उनका हाथ बटाता है। मुझे लगता है ख़ुशी से, मन लगाकर काम करने से, माँ की बात मानने से काम वाली भी घर की सदस्य ही बन जाती है।
आज के ज़माने में माँ को भी घर से बाहर लम्बे समय तक काम करना पड़ता है। तब भी "home made" खाना बनाने की ज़िम्मेदारी काम वाली की ही होती है। शायद एक समय के बाद "माँ के हाथ का खाना" हमारी नयी generation के लिये एक comforting याद ही नहीं रहेगा। फिर कोई नहीं कहेगा कि बेटे के हाथ से माँ की रोटी छिन गयी है...
true now a days
Change is inevitable and change is the law of nature. Future holds a much different picture which does not have a maid for cooking meals but an app which will ensure home delivery of chicken or beefburger, pizza or maggi at predetermined time at home or office and devoured while working on computer or watching tv on mobile. Smart office and smart homes is the future. Moreover, chapatti or subji will be replaced by custom made multivitamin and complete energy, protein and fat drink. the protein may not come from milk but will be genetically produced in large biotech factories.
सचमुच, समय ने क्या क्या बदल दिया...
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