Sunday, August 4, 2013

अप्रत्याशित घटना

कैसे
कोई
किसी को
छोड़ के
चल देता है
रोता हुआ, बिलखता हुआ
वापस आने का दिन तय किये बिना


दो महीने? दो साल? तीन साल?
न जाने फिर कब वापस आना होगा


आते वक़्त
जितना उत्साह होता है
उतना ही
या उससे भी अधिक
दु:ख होता है
जाते वक़्त


हर आवागमन
फिछले आवागमन से
अधिक दुखदायी होता है


घर में धीरे-धीरे चीज़ें कम होने लगती हैं
दवाईयों की डब्बियाँ बड़ने लग जाती हैं
डॉक्टरों के पर्चों के पुलिंदे फूलने लगते हैं
दवाईयों की बंदी लग जाती है
और दवाईवाला घर का सदस्य बन जाता है


विवशता
अनिवार्य हो जाती है
अनिश्चितता
रोज़ सुनिश्चित हो जाती है
एक अप्रत्याशित घटना का
घटना प्रत्याशित हो जाता है


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ज़िंदगी एक पहेली
मौत एक कविता
मानता है जो
'आनंद' में सदा
रहता है वो


4 अगस्त 2013
मुम्बई । 98713-54745
         

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4 comments:

Anonymous said...

राहुलजी, आपकी कवितायें हँसाती भी हैं और कभी-कभी बहुत रुलाती हैं!

Goodbyes are so hard. जब दो इंसानों में सच्चा रिश्ता होता है तो बिछड़ने का दुःख भी दोनों को होता है। कुछ लोग इस दुःख से जल्दी संभल जाते हैं और कुछ को ज़्यादा समय लगता है। जो संभल जाते हैं वो ज़िन्दगी को पहेली कहते हुए, मौत को कविता बताते हुए, "आनंद" से किसी नए सफ़र पर निकल पड़ते हैं। जिन्हें कोई नयी डगर दिखाई नहीं देती उनका समय वहीँ थम सा जाता है। अगर जाने वाला प्यार का विश्वास दिला जाये और लौटने की आस बंधा जाये तो उन्हें कुछ सहारा मिल जाता है। लेकिन वह सोचते रहते हैं कि फिर मिलना कब होगा, होगा भी या नहीं, कि जाने वाला उन्हें याद करेगा कि नहीं? आपने सही कहा कि यह प्रशन और बेबसी ही बीमारी का रूप ले लेते हैं। सच तो यही है कि हम सबको जीने के लिए कोई आस, कोई कारण, किसी से प्यार, किसी का प्यार, और एक विश्वास चाहिए। इनके बिना जीवन बिल्कुल खाली, उदास, और अर्थहीन है।

random thougts said...

Although we all know that life is a complex and complicated poem which we all have to read or write but reading your blog makes the job of living life a little easier. A little oasis in a vast mirage of life.

अनुपमा पाठक said...

हर आवागमन
फिछले आवागमन से
अधिक दुखदायी होता है

***
So true!

ANULATA RAJ NAIR said...

क्या कहूँ...मन भीग गया....
निःशब्द हूँ...


सादर
अनु