Thursday, September 5, 2013

आए दिन हादसे होते ही रहते हैं

आए दिन हादसे होते ही रहते हैं
कब तक कोई आंसू बहाए?

कभी बाढ़
तो कभी अकाल
कहीं आग
तो कहीं अत्याचार

उम्र के साथ-साथ ज्ञान भी बढ़ता जाता है
और सारी विषमताओं से मुख मोड़ लिया जाता है
कि
सबको अपने-अपने कर्मों का फल मिलता ही है
और अपना भी तो एक जीवन है

किसी का जन्मदिन है
किसी की सालगिरह है
किसी का प्रमोशन हुआ है
तो किसी की किताब छपी है

हलवा तो बनेगा
केक तो कटेगी

हादसों का क्या है?
हादसे तो होते ही रहते हैं
कब तक कोई आंसू बहाए?

5 सितम्बर 2013
बिहार में आई बाढ़ से अद्रवित हो कर
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

आपने सही कहा है कि हम दुःख-भरी ख़बरों के बारे में सोचना ही नहीं चाहते। अगर किसी खबर से दिल को दुःख महसूस होता है तो दिमाग तर्क देने लगता है - "सबको अपने-अपने कर्मों का फल मिलता ही है", "अपना भी तो एक जीवन है", आंसू बहाए तो लोग बात नहीं करेंगे, जब हम कुछ कर ही नहीं सकते तो दुखी होने से क्या फायदा - और इस तर्क में दिल की आवाज़ दब जाती है, दिमाग फिर से दिल पर हावी हो जाता है...