Sunday, March 30, 2014

सपने!

आज सुबह
जब मैं देर से उठा
तो
घड़ी के काँटे
अपनी मूँछों पर ताव दे रहे थे

और
दुनिया बदली-बदली सी लगी

मन हुआ कि
कलफ़ लगे कड़क सफ़ेद कुर्ते-पजामे में मैं
सोफ़े पर पसर कर
अखबार पढ़ूँ

और बीच-बीच में
लम्बे पतले काँच के ग्लास से
ऑरेंज जूस की चुस्कियाँ लेता जाऊँ

ऐसा नहीं
कि इंसान हमेशा अपना बचपन ही याद करता है

कभी-कभी
देर से जगने पर
वो
रिटायरमेंट के सपने भी देख लेता है

सपने!
कितनी अजीब बात है!
जिन्हें
हम जगते हुए देखते हैं
वे
अंततोगत्वा
हमारी नींद छीन ही लेते हैं

सपने!
जिन्हें देखना
नितांत नि:शुल्क क्रिया है
उनके पीछे
भागते-भागते
जागते-जागते
इंसान
पूरा का पूरा
खर्च हो जाता है

30 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798
 

Thursday, March 20, 2014

आई बसंत (2)

आई बसंत
जागा जाड़ा
बर्फ़ बिछा के
जोर से दहाड़ा

'गर दिन है तुम्हारा
तो रात है मेरी
सुबह दस बजे तक रहेगी
हुकुमत मेरी

उसके बाद
जो मन में आए वो करना
ट्यूलिप उगाना
क्यारियाँ सजाना
वसंत के वसंती
रंगों में घुलना
शाम को देर तक
सैर-सपाटे करना
रात-रात भर
उल्लू सा जगना
सुबह पाँच बजे ही
सूरज से मिलना

लेकिन समय बदलता है
और बदलोगे तुम
थोड़े ही दिनों में
ऊब जाओगे तुम
गर्मी की गर्मी में
झुलस जाओगे तुम
वापस मुझे बुलाओगे तुम
सफ़ेदी के सपने सजाओगे तुम
बच्चों को कॉलेज से बुलाओगे तुम
मफ़लर-स्वेटर दिलाओगे तुम
फ़ायर-प्लेस के पास अलख जगाओगे तुम
परिवार के एक-दूसरे से जुड़ पाओगे तुम

जाते हुए मौसम की एक बात याद रखना
हर वक़्त हर किसी को अतिथि समझना
जो आज है कल उसका होना तय तो नहीं 
हर कोई होता मौसम तो नहीं

20 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798
http://m.almanac.com/content/first-day-spring-vernal-equinox

Monday, March 17, 2014

पहाड़े याद नहीं रहते

पहाड़े याद नहीं रहते
और पहाड़ याद आते रहते हैं
जब भी निकलता हूँ सैर पर
या रखता हूँ सर तकिए पर


पहाड़ और पहाड़े
दोनों के लिए
उम्र ठीक नहीं है
लेकिन क्या करूँ
एक याद आता है
एक भूल जाता हूँ


ताज्जुब है
कितना कुछ याद है मुझे


वो सिसिल होटल के सामने वाले चौराहे का गज़ीबो
कहीं-कहीं से उखड़ा हुआ पेंट
बीच वाली बैंच पर कोई नाम लिखा हुआ
खिड़की के दो शीशों में फ़ंसी धुंध से बनी धुंधली आकृति


क्या अब भी सब कुछ वैसा ही होगा?


क्या काली-बाड़ी वाले मंदिर का पुजारी अब भी स्कूल जाते बच्चों को मखाने-मिश्री का प्रसाद देता है?
क्या हनीमून पर आये जोड़े अब भी उन बच्चों से अपनी तस्वीर खिंचवाते हैं?
क्या गुफ़ा रेस्टोरेंट के सामने वाली बेजान प्रतिमा हाथ बढ़ाने पर अब भी अपने घड़े से पानी पिलाती है?
क्या जाखू हिल्स पर बंदर अब भी कूदते हैं?
क्या रीगल टॉकीज़ के उपर स्केटिंग रेंग में रैलिंग पर ठुड्डी लगाकर बच्चे अब भी सम्भ्रांत देसियों को विदेशियों की तरह स्केटिंग करते देखते हैं
और प्रण करते हैं कि वे कभी वेदेशी नहीं बनेगे और ज़मीन से जुड़े रहेंगे?


पहाड़े तो याद नहीं
लेकिन पहाड़ बहुत, बहुत याद आते हैं
जब भी निकलता हूँ सैर पर
या रखता हूँ सर तकिए पर


17 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

Friday, March 14, 2014

आई बसंत

आई बसंत
तो हुआ बस अंत
जाड़े का
ठिठुरने का
सिरहाने से ले कर
पाँव तक
गुदड़ी में छुप के
सिहरने का
लाल-पीली-टोपी में
गंजे सर के
गंजे सर के
दुबकने का

आई बसंत
तो हुआ बस अंत
फ़ायर-प्लेस के जलने का
हॉट सूप को पीने का
रसम की रस्म निभाने का

आई बसंत
तो हुआ बस अंत
बसों में घर जाने का
मुँह-अंधेरे घर से निकलने का
स्कूल बंद होने की आस रखने का
गाड़ी के फिसल जाने का
पहाड़ों पे चिपकी सफ़ेदी का

आई बसंत
तो आया समझ
कि
कुछ खोना है
कुछ पाना है
जीवन का मतलब
दोनों को दिल में
संजोना है

वैसे भी
दोनों का काम ही है
संजोना
चाहे रायता हो
या रबड़ी
खीर हो
या सब्ज़ी
लाज रक्खी
इन्होंने सबकी

14 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, March 11, 2014

सात हफ़्ते सरकार चले

सात हफ़्ते सरकार चले
चार हफ़्ते चुनाव
कहने को है भारत में
हो रहा बहुत सुधार

हो रहा बहुत सुधार
एयरपोर्ट पर सिक्युरिटी बढ़े
और बस अड्डों पे
हो रहा अत्याचार

हो रहा अत्याचार
हर गली मदरसे खुलें
जहाँ व्यक्तिगत सफलता के नाम पे मदर से दूर
बंदे भाग रहें विदेश

बंदे भाग रहें विदेश
कर के देश से विश्वासघात
नाम बदलें, पासपोर्ट बदलें
बदलें सोच-विचार

बदलें सोच-विचार
करें वार पे वार
वोट तो है देना नहीं
लेकिन लिखें कवित्त, भेजें जोक्स, करें घात पे घात

11 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, March 9, 2014

बैचलर पार्टी


भारत है इक नदिया
कांग्रेस-बीजेपी दो किनारे हैं
न जाने कहाँ जाएँ
हम बहते धारे हैं

बढ़ते हुए भ्रष्टाचार की
रफ़्तार में इक लय है
जो जितना सम्पन्न है
उतना ही वो भ्रष्टमय है
है कौन है जो अच्छा
सब चोर चकारे हैं

पिछले कुछ वर्षों में
विपदाएँ कई आई
इन दोनों में कोई
नहीं हमको बचा पाई
बस एक ही है रक्षक
जिसे पूजते सारे हैं

किस किस को नहीं चुनें
किस किस का करें विश्वास
दोनो ही बैचलर हैं
बैचलर पार्टी का क्या विश्वास
जिस पार्टी में हो कर के
नंगे नाचते सारे हैं

9 मार्च 2014
(अभिलाष से क्षमायाचना सहित)
व्हाईट रॉक । 513-341-6798

Wednesday, March 5, 2014

पौराणिक कथा

वही लोग
वही भोजन
वही हास-परिहास

वही कथा
सुनी-सुनाई
कलावती के
बाप की भूल
फिर से
सबको याद कराई

क्यों
करते हैं
कराते हैं
करवाते हैं
पौराणिक कथाओं का
उपहास उड़ाते हैं

ताकि
एक बहाना मिल सके?
संस्कृति से
समाज से
समुदाय से
जुड़ जाने का?
जिन्होंने खिलाया
उन्हें खिलाने का?
अपने घर बुलाने का?

5 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, March 4, 2014

मैं जनता हूँ

मैं विनीत को वेंकट
और मेघा को उषा कहता हूँ
नामों का क्या?
नाम बदलता रहता हूँ

कहने को है
मेरी याददाश्त कच्ची
मैं रोज़ एक नया
फ़लसफ़ा गढ़ता हूँ

जीतेगा ये
या जीतेगा वो
सम्भावनाएँ सबकी
मैं रखता हूँ

ये भी सही है
और वो भी सही
सम-भावनाएँ सबकी तरफ़
मैं रखता हूँ

मैं जनूँ
या ना जनूँ
कहनेवाले कहते
मैं जनता हूँ

4 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, March 2, 2014

साक्षात्कार

जितने भी मंत्र होने चाहिए
सब के सब
लिखे जा चुके हैं
पढ़े जा चुके हैं

जितने भी देवी-देवता हैं
सब के सब
गढ़े जा चुके हैं
पूजे जा चुके हैं

लेकिन क्या वे प्रश्न
जो पूछे जाने चाहिए
पूछे जा सके हैं?

जिन प्रश्नों के उत्तर
अर्जुन को मिले थे
क्या हमें
समझ आ सके हैं?

एक रोबोट की तरह
हम किसी पुजारी
किसी आदेशक, निदेशक
के कहे अनुसार
किसी मेनुअल में लिखे नियमों के अनुसार
हाथ हिलाते हैं
दीप जलाते हैं
सर झुकाते हैं
घुटने टेकते हैं
लेकिन क्या कभी
उस
परमपिता परमेश्वर से
साक्षात्कार कर पाते हैं?

खुद तो कन्फ़्यूज़्ड हैं ही
नई पीढ़ी को भी
कन्फ़्यूज़्ड कर देते हैं

2 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798