Tuesday, March 11, 2014

सात हफ़्ते सरकार चले

सात हफ़्ते सरकार चले
चार हफ़्ते चुनाव
कहने को है भारत में
हो रहा बहुत सुधार

हो रहा बहुत सुधार
एयरपोर्ट पर सिक्युरिटी बढ़े
और बस अड्डों पे
हो रहा अत्याचार

हो रहा अत्याचार
हर गली मदरसे खुलें
जहाँ व्यक्तिगत सफलता के नाम पे मदर से दूर
बंदे भाग रहें विदेश

बंदे भाग रहें विदेश
कर के देश से विश्वासघात
नाम बदलें, पासपोर्ट बदलें
बदलें सोच-विचार

बदलें सोच-विचार
करें वार पे वार
वोट तो है देना नहीं
लेकिन लिखें कवित्त, भेजें जोक्स, करें घात पे घात

11 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

कविता का writing style अच्छा लगा - हर stanza की last line अगले stanza की first line है।
यह बात सही है कि लंबे चुनाव campaigns के बाद जब सरकार कुछ ही दिनों में टूट जाती है तो समय और पैसों की बहुत wastage लगती है। सरकार टूटने और अब न होने के लिए कौन responsible है - वो जिन्होंने clear mandate से किसी को चुना नहीं, या वो जिन्होंने कुछ common grounds पर साथ देने का वादा कर लिया या वो जिन्होंने clear majority न होते हुए भी सरकार बनाई या वो जो आज भी इंतज़ार कर रहे हैं कि शायद नई सरकार बन जाए या वो जो सत्ता में आने के लिए इस समय भी alliances बनाने में लगे हुए हैं?