Wednesday, June 24, 2015

आपातकालीन स्वर्ण युग




बड़ों के लिए होगा आपातकाल
मेरे लिए तो स्वर्णिम युग था
शिमला में जो गुज़रा एक साल था
साल नहीं वह स्वर्ग था

घरों में घुसते बादल
देर से पकती दाल
साउथ इण्डियन कैफ़े का मसाला दोसा
बालाजी की साफ़्टी
गेटी थियेटर के जलवे
रिज के गाँधी
गुफ़ा की मूर्ति 
जतोग की पहाड़ी के पीछे डूबता सूरज
कालीबाड़ी का प्रसाद
राष्ट्रपति-निवास का ऐश्वर्य 
सिसिल होटल का गज़ीबो

बिना सेंसर की गई
चंदामामा
पराग
नंदन
लोटपोट

घर से
3 मील दूर स्कूल तक 
सहपाठियों का साथ चलना
सैलानियों का फ़ोटो खींचना-खिंचवाना 
पेड़ों से सेब-नाशपाती तोड़ना
ईद की सेवियाँ 
दीवाली की आधी चाकलेट-आधी खोए वाली बर्फ़ी 

पहाड़ो पर चढ़ना, उतरना, फिर चढ़ना 
जाते हुए कुलाँचे भरते जाना
और आते वक़्त ( कहीं लकड़बग्घा हँस न दे) के डर से
सहमे-सहमे घर आना

ठंड में 
बड़ी दूर से 
दादा के साथ चलकर घर आना
और घर आकर गरम-गरम गौर-राब पीना

वो ब्लेज़र
वो कार्डिगन
वो जुर्राबे
वो दस्ताने
कभी किसी डॉक्टर के पास न जाना
घर में ही मिक्स्ड-फ़्रूट के जाम बनाना

जब इतना सब एक साथ एक ही साल में हो 
तो वो स्वर्ग नहीं है तो और क्या है?

24 जून 2015
सिएटल । 425-445-0827




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1 comments:

Anonymous said...

कविता के title से guess करना मुश्किल है कि कविता किस बारे में होगी। "आपातकाल" का meaning ढूंढने के बाद भी समझने में समय लगा की शिमला की बात से क्या connection है। आखिर बात समझ में आ गयी! :) आपकी बारिश की बूंदों वाली कविता और मूंगफली-दस्ताने वाली कविता भी याद आ गयी।

बच्चों का भोला बचपन कितना दूर होता है देश की बड़ी-बड़ी problems से! शिमला की सैर अच्छी हो गयी कविता से - कितने सारे landmarks की बात है इसमें - कुछ well-known हैं , कुछ सिर्फ आपके जीवन के लिए memorable हैं। बचपन की छोटी-छोटी बातें हमें कितनी vividly याद रह जाती हैं!

पर मूंगफली के छिलकों की यादें थोड़ी मिस कीं इस कविता में! :)