Thursday, October 8, 2015

संग भी इन दिनों सलामत नहीं


संग भी इन दिनों सलामत नहीं
ताज बने ऐसी हालत नहीं

विदेशियों पे करते हैं इतना भरोसा
कि देश में पनपती सदारत नहीं 

चिपके ओबामा और मार्क से ऐसे
मानो इनके बिना बढ़ेगा भारत नहीं

डॉलर शहद और मक्खी हैं हम
शहद चाटनेवाले देते शहादत नहीं

मरे कोई, किसी को जँचता नहीं
कहने की करते सब हिमाक़त नहीं

संग = पत्थर 
सदारत = नेतृत्व, leadership 
शहादत = शहीद होना
हिमाक़त = मूर्खतापूर्ण साहस

8 अक्टूबर 2015
सिएटल । 425-445-0827


इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


1 comments:

Anonymous said...

"सरादत", "शहादत", "हिमाक़त" बहुत hard शब्द हैं और कविता को समझने के लिए ज़रूरी हैं। Thank you कि आपने उनका अर्थ बता दिया।

आपकी बात सही है कि materialist nature का person बलिदान नहीं दे सकता। किसी भी प्रकार का बलिदान देने के लिए selflessness और higher goal की aspiration चाहिए। अगर लोग dollar, rupee, या किसी material चीज़ से लगाव रखेंगे तो वो बलिदान नहीं देंगे - चाहे वो स्वदेश में रहते हों या विदेश में।