Sunday, July 31, 2016
Saturday, July 30, 2016
Friday, July 29, 2016
अब भी हैं कुछ निष्पाप चराचर
मेघों के कंधों पर रख के
सबने बंदूक़ चलाई है
कभी प्रियतम को बाँह में बाँधा
कभी स्कूल की छुट्टी कराई है
कोई पर्यावरण पर भाषण देता
कोई देता किसानों की दुहाई है
हर कोई अपना उल्लू सीधा करता
पल-पल करता चतुराई है
खेत-खलिहान, पर्वत-सरिता
सब पुलकित हो जाते हैं
काले ऊटपटाँग बादलों से
उनके सपने पूरे हो जाते हैं
और उधर श्वेत रूई के फोहों से जो
एक क़तार में सुव्यवस्थित हो जाते हैं
उनसे भी अटकलें लगा-लगाकर
बाल-वृंद रोमांचित हो जाते हैं
किसी को घोड़े, किसी को हाथी
किसी को बकरी-मेमने दिखने लग जाते हैं
बादलों की बनती-बिगड़ती आकृतियों में
सबको अपने-अपने मनवांछित रूप मिल जाते हैं
मेघों के कंधों पर रख के
सबने बंदूक़ चलाई है
पर अब भी हैं कुछ निष्पाप चराचर
जो सहज आह्लादित हो जाते हैं
29 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
=======
निष्पाप = sinless
चराचर = movable and immovable
Thursday, July 28, 2016
Wednesday, July 27, 2016
Tuesday, July 26, 2016
जोड़-तोड़ श्रंखला कड़ी #74
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:42 AM
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Labels: riddles
Monday, July 25, 2016
Sunday, July 24, 2016
Saturday, July 23, 2016
जवानी में प्रियतम
जवानी में प्रियतम
बचपन में मामा
बहुरूपिया नहीं
कोई तुमसा प्यारा
घटते हो, बढ़ते हो
दिखते हो, छुपते हो
बहुरूपिया नहीं
कोई तुमसे ज़्यादा
सागर भी उछले
बादल भी चूमे
रक़ीबों ने भी चाहा
तो मिल के तुम्हें चाहा
होली हो, दीवाली हो
या हो राखी-भैया-दूज
हर तीज-त्योहार
हमने तुमसे बाँधा
सुहागिन भी पूजे
लड़कपन भी ताके
कशिश तुममें कैसी
समझ मैं न पाया
दाग भी हैं
और बेनूर भी हो
फिर भी ख़ूबसूरती का
मापदण्ड तुम्हें माना
भूखा भी रखते हो
मिटाते भी भूख हो
हर मज़हब ने तुमको
हबीब अपना जाना
नाम भी तुम्हारे
अनगिनत कई हैं
मैं लिखूँ, न लिखूँ
समझ गया ज़माना
23 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems
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रक़ीब = rivals in love
ताके = to gaze
हबीब = friend
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:33 AM
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Labels: nature, relationship
Friday, July 22, 2016
Thursday, July 21, 2016
Tuesday, July 19, 2016
Monday, July 18, 2016
Sunday, July 17, 2016
Saturday, July 16, 2016
मेरे गीतों में अब भी सावन है
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
यह छत से चूता पानी है
यह सड़क पे घुटनों तक गंदला पानी है
भीग जाओ तो बीमारी हो जाती है
कपड़ों में मोल्ड हो जाती है
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
कभी हँसता था, अब रोता हूँ
तकिये का लिहाफ़ भिगोता हूँ
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
कब क्या हुआ और क्यूँ हुआ
इसका तो कोई जवाब नहीं
लिखने को लिख दूँ बात अनेक
पर रिश्तों का होता हिसाब नहीं
सब बदलता है, सब बदलेगा
वक़्त भी एक न एक दिन बदलेगा
फिर एक दिन ठहाके गूँजेंगे
दीवाली के पटाखे फूटेंगे
गोया आज मेरे कोई पास नहीं
करता मुझे कोई याद नहीं
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
16 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:32 AM
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Labels: relationship
Friday, July 15, 2016
अमरीका में हम आए हैं तो सब सहना ही पड़ेगा
अमरीका में हम आए हैं तो सब सहना ही पड़ेगा
उम्मीदवार हैं अगर ट्रम्प तो उन्हें झेलना ही पड़ेगा
ट्विटर हो या फ़ेसबुक हो या चैनल हो कोई भी
अख़बार हो या ब्लॉग हो या स्टेशन हो कोई भी
हर जगह इनकी बकवास को सुनना ही पड़ेगा
भारत भी अगर जाएँ तो वहाँ चैन कहाँ है
यहाँ सेर हैं तो वहाँ भी सवा-सेर जमा हैं
आए दिन किसी न किसी से उलझना ही पड़ेगा
दो दिन की है हुकूमत, है अगर दो दिन की जवानी
आनी है, और जानी है, जैसे पत्तों पे पानी
कोई कितना ही उछले आज, कल उतरना ही पड़ेगा
कर्मों का है ये खेल, है ये कर्मों की कहानी
जुग-जुग से सुनते आए हम संतों की ज़ुबानी
जो जैसा करेगा, उसे वैसा भुगतना ही पड़ेगा
करें सत्कर्म, सँवारें ये जीवन जितना भी बचा है
कौन हारेगा, कौन जीतेगा, ये किसको पता है
ये हारना, ये जीतना, एक दिन भूलना ही पड़ेगा
(शकील बदायूनी से क्षमायाचना सहित)
15 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:02 PM
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Labels: US Elections
Thursday, July 14, 2016
Wednesday, July 13, 2016
न मैं ट्रम्पभक्तों में से एक हूँ
न मैं ट्रम्पभक्तों में से एक हूँ
न हिलेरी क्लिण्टन का समर्थक हूँ
जो अपने काम से काम रखे
मैं वो आठ से पाँच वाला क्लर्क हूँ
न मैं देशभक्ति से ओतप्रोत हूँ
न मैं देखता टी-वी रोज़ हूँ
न मैं लेता अख़बार सोख हूँ
मैं न करता कुछ निरर्थक हूँ
मैं चार क्लास क्या पढ़ गया
सारा ज्ञान मुझको मिल गया
नया पढ़ने-लिखने से क्या फ़ायदा
बस करता परिश्रम अथक हूँ
कल देश कौन चलाएगा?
कब कौन किसे हराएगा?
इन अटकलों से मुझे क्या वास्ता
नहीं करता नाहक तर्क-वितर्क हूँ
कुछ लताड़े कि कुछ तो कर्म कीजिए
बने हैं नागरिक तो मत दीजिए
उनसे कहना है कि आप मत खीजिए
मैं अपने कर्तव्य के प्रति सतर्क हूँ
करूँगा राईट-इन ये है फ़ैसला
दोनों में से एक भी न मेरा वोट पाएगा
आगे जो भी होगा देखा जाएगा
संविधान के आगे नतमस्तक हूँ
(मुज़्तर ख़ैराबादी से क्षमायाचना सहित)
13 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
ओतप्रोत = imbued
सोख = soak up
राइट-इन = write-in = https://en.m.wikipedia.org/wiki/Write-in_candidate
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:00 PM
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Labels: US Elections
तेरा साथ है तो
कोई कहता कुछ है
कोई सुनता कुछ है
कोई लिखता कुछ है
कोई पढ़ता कुछ है
कोई समझता कुछ है
और कुछ का कुछ हो जाता है
-------
उन्होंने कहा:
मैं नेपाली
किसी ने सुना:
मैंने पाली
किसी ने लिखा:
मैंने पा ली
-------
पिछले हफ़्ते तारीख़ थी:
सात-सात
लिखे गए अलग-अलग
पर सुनाई दिए साथ-साथ
थे दो ही
पर लगा जैसे हों सात सात
और
आज के तो ठाठ ही निराले हैं:
तेरा साथ है
तो मुझे क्या कमी है
अंधेरों से भी मिल रही रोशनी है
13-7-2016
सिएटल | 425-445-0827
Http://tinyurl.com/rahulpoems
(तेरा साथ है तो - संतोष आनंद का लिखा यह प्यारा गीत सुनें एवं देखें यहाँ : http://youtu.be/Vw6Ttzj7ea8)
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:25 AM
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Labels: relationship
Tuesday, July 12, 2016
Monday, July 11, 2016
Sunday, July 10, 2016
Saturday, July 9, 2016
Friday, July 8, 2016
Wednesday, July 6, 2016
Tuesday, July 5, 2016
जो शत आह भर के भी न हताश हो
जो शत आह भर के भी न हताश हो
जिसके दिल में फिर भी न खटास हो
ऐसा इन्सान संत हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है उसकी हीर न उसके पास हो
जो अपनी बात पर अडिग रहे
दुनिया-जहाँ से अनभिज्ञ रहे
चाहें लाख आएँ मुसीबतें
अपने ध्येय पर केन्द्रित रहे
ऐसा इन्सान वीर हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है हीर की उसे तलाश हो
जिसके हाथ में गुलाब हो
जिसके पाँव में थिरकाव हो
जो गली-गली झूमे मगन
जिसके राग में अनुराग हो
ऐसा इन्सान आशिक़ हो ज़रूरी नहीं
हो सकता है सच्चिदानंद का उसे आभास हो
5 जुलाई 2015
दिल्ली | +91-88004 20323
Monday, July 4, 2016
Sunday, July 3, 2016
Saturday, July 2, 2016
Friday, July 1, 2016
पीपल का पेड़
पीपल का पेड़
जहाँ-तहाँ
उग आता है
कहीं सनी लियोन के पोस्टर के नीचे
तो किसी दुकान की दहलीज़ पर
तो किसी आँगन की दीवार को फोड़कर
दिल्ली की धूल में
महानगर के विराट पुल पर
अट्टालिकाओं के कगार पर
पीपल का पेड़
जहाँ-तहाँ
उग आता है
*****
एक हम हैं
कि
न उगते हैं
न डूबते हैं
पर्यावरण पे
दोष मढ़ते हैं
****
प्रतीक्षा है निर्वाण की
कि कब लगे कुण्डी किवाड़ की
कोई वृहद सा वृक्ष हो
जिसमें न कोई नुक़्स हो
जिसके नीचे आँख मूँदें
दुनिया-जहाँ को हम भूलें
न संस्कार हों
न विकार हों
स्मृतिकोष
का रिक्त भण्डार हो
****
पीपल का पेड़
जहाँ-तहाँ
उग आता है
कब, कौन, किसे, कहाँ
उगाता है?
2 जुलाई 2016
दिल्ली । 88004 20323
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