मैं झूठ नहीं बोलूँगा
कि झूठ अच्छा नहीं लगता
सपने किसे अच्छे नहीं लगते?
28 जुलाई 2017
सिएटल | 425-445-0827
http://mere--words.blogspot.com/
अर्ध विराम = ;
भरा हुआ अर्ध विराम = pregnant pause
(2) - इस श्रंखला की दूसरी कड़ी
मैं झूठ नहीं बोलूँगा
कि झूठ अच्छा नहीं लगता
सपने किसे अच्छे नहीं लगते?
28 जुलाई 2017
सिएटल | 425-445-0827
http://mere--words.blogspot.com/
अर्ध विराम = ;
भरा हुआ अर्ध विराम = pregnant pause
(2) - इस श्रंखला की दूसरी कड़ी
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:21 PM
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Labels: भरा हुआ अर्ध विराम
सूरज उगता है
सूरज डूबता है
हर क्षण
बारह घंटे की दूरी पर
फिर कैसा दिन?
और कैसी रात?
फिर सुबह होगी ...
एक भद्दा मज़ाक़ है
सूरज है आत्मा
धरती है माया
जो
जो है नहीं, वो दिखाती है
ख़ुद ही मुँह चुराती है
और सूरज को दोषी ठहराती है
न दिन है, न रात है
न सुबह है, न शाम है
बस
प्रकाश ही प्रकाश है
राहुल उपाध्याय | 27 जुलाई 2017 | सिएटल
तुमने कभी नदी को सागर से मिलते देखा है?
नदी फैल सी जाती है
सागर उमड़ता आता है
तुमने कभी किसी को बाँहों में भरते देखा है?
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अर्ध विराम = ;
भरा हुआ अर्ध विराम = pregnant pause
(1) - इस श्रंखला की पहली कड़ी
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:32 PM
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Labels: भरा हुआ अर्ध विराम
क्या भूलूँ
क्या मैं याद करूँ
पग-पग का है अहसास मुझे
कई प्रधानमंत्री गए
कई प्रधानमंत्री आए
कई राष्ट्रपति गए
कई राष्ट्रपति आए
इन सब का मुझे कोई भास नहीं
पर
कब किसने मेरी बाँह थामी
कब किसका मैंने साथ दिया
इन सबका है अहसास मुझे
पग-पग का है अहसास मुझे
चला था नीड़ से नीड़ निर्माण की ओर
पता न चला कब टूटी डोर
रात भयावह सी आती है
माँ की ममता चीत्कारती है
सुबह होते-होते
तस्वीर बदल सी जाती है
घड़ी के काँटों में मैं फँस जाता हूँ
कब ह्रास हुआ
कब हास हुआ
इन सबका है अहसास मुझे
पग-पग का है अहसास मुझे
क्या कर्म मेरा
क्या वर्ण मेरा
उत्तर क्या
ये प्रश्न मेरा
पश्चिम में क्यूँ पूरब के ख़्वाब आते
घर होते हुए क्यूँ हम बेघर हो जाते
एक-एक प्रश्न है याद मुझे
पग-पग का है अहसास मुझे
क्या भूलूँ
क्या मैं याद करूँ
पग-पग का है अहसास मुझे
(घर छोड़ने की 35 वीं वर्षगाँठ पर)
25 जुलाई 2017
सिएटल | 425-445-0827
नीड़ = घोंसला, घर
ह्वास = घिस जाना, कम हो जाना, घट जाना
हास = परिहास, हँसी