सूरज उगता है
सूरज डूबता है
हर क्षण
बारह घंटे की दूरी पर
फिर कैसा दिन?
और कैसी रात?
फिर सुबह होगी ...
एक भद्दा मज़ाक़ है
सूरज है आत्मा
धरती है माया
जो
जो है नहीं, वो दिखाती है
ख़ुद ही मुँह चुराती है
और सूरज को दोषी ठहराती है
न दिन है, न रात है
न सुबह है, न शाम है
बस
प्रकाश ही प्रकाश है
राहुल उपाध्याय | 27 जुलाई 2017 | सिएटल
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