जितना मंजन किया
उतना वंदन किया
फिर भी दाँत झड़े
दु:ख न घटे
डॉक्टर ढूँढे
पण्डित ढूँढे
सबने घुटने
टेक दिए
कहने लगे
ढलती उम्र का इलाज नहीं
जीवन के चढ़ाव-उतार से निजात नहीं
फिर क्यूँ माँजूँ?
नाम भजूँ?
जिसका कोई स्थायी स्वभाव नहीं?
क्योंकि माँजे बिना मुस्कान नहीं
गुणगान बिना हर्ष-ओ-उल्लास नहीं
राहुल उपाध्याय । 9 अगस्त 2019 । सिएटल
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