ख़ला जो ख़ालिद है
ख़ला जो वालिद है
उसी में जीवन
ढूँढने की ज़िद है
चाँद चूमना
तो फ़क़त एक बहाना है
चाँद से भी दूर
दूर तलक जाना है
सोम से मंगल
मंगल से बुध
बुध से गुरू
गुरू से शुक्र-शनि
रवि पर भी जाना है
रवि पर भी रूककर
आराम कहाँ फ़रमाना है
किसी एक के
गुरुत्वाकर्षण में
किसी एक के
आगेश में
ठहरे वो
जो सयाना है
अपना क्या?
न कोई अपना
न कोई बेगाना है
आज यहाँ तो
कल कहीं जाना है
जीवन जीने का
तरीक़ा यही जाना है
(अमेरिका में पदार्पण की 33वीं वर्षगाँठ पर)
राहुल उपाध्याय । 15 सितम्बर 2019 । सिएटल
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ख़ला = शून्य, अन्तरिक्ष
ख़ालिद = अनश्वर, अमर
वालिद = पिता
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