चुभ जाती हैं ये हवाएँ
गड़गड़ाता है गगन
हो रही है जम के जग हँसाई
ज़ूबी डूबी परमपम
ज़ूबी डूबी, ज़ूबी डूबी परमपम
ज़ूबी डूबी, ज़ूबी डूबी परमपम
रोए यूँ पागल एन-आर-आई
शाख़ों से पत्ते गिर रहे हैं
फलों पे कीड़े लग रहे
सड़कों पे फिसलन हो रही है
ये पंछी चीख़ रहे
बगिया में दो बूढ़ों की
हो रही है गुफ़्तगू
जैसा बचपन में रोता था
रो रहा है हुबहू
रिमझिम रिमझिम रिमझिम
सन सन सन सन हवा
टिप टिप टिप टिप बूँदे
गुर्राती बिजलियाँ
भीगा-भागा बैकपैक
ढो के यूँ बस पकड़ता तू
जैसा बचपन में ढोता था
ढो रहा है हुबहू
आय-आय-टी का पास तू
यहाँ बर्तन धो रहा
कच्चे-पक्के दाल-चावल
खा के पेट भर रहा
हैं रातें अकेली तन्हा
सो रहा है हाथ में रिमोट ले तू
जैसा बचपन में सोता था
सो रहा है हुबहू
(शान्तनु मोयत्रा से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2019 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment