Thursday, October 10, 2019

कहाँ से चला, कहाँ मैं आज

कहाँ से चलाकहाँ मैं आज
कर्क रेखा से उड़ाहूँ पैतालिस के पार
सर्दी-गर्मी-बरसात के झंझट से दूर
है वातानुकूलित निवास

एक ग़रीब सा तबक़ा 
होंगी कोई सौ-दो-सौ झोपड़-पट्टी
जहाँ पाँच बसें सुबह आती थीं
शाम को चार
 था डॉक्टर
 कोई उपचार
स्कूल भी जाना हो
तो जाते थे रतलाम 
ऐसा था शिवगढ़
मेरा जन्मस्थान 

आमदनी के नाम पर भी
कहाँ था कुछ ख़ास
किसी की नहीं थी
कोई नियमित आय
या कोई स्थायी नौकरी
कोई पान बेचता था
कोई बीड़ी
कोई मिठाई
कोई दूध
कोई नाई
तो कोई बढ़ई 

वहाँ से आज मैं हूँ समामिश में
अमेरिका के एक ऐसे शहर में 
जहाँ के निवासियों की 
पूरे अमेरिका में हैं सबसे अधिक आय

हैं घर-गाड़ी-सारे ऐश--आराम
जिस सुविधा की कल्पना करो
वही सहज मुहैया आज

कहाँ से चला
कहाँ मैं आज

सच कहूँ तो मैं चला ही कहाँ
मुझे नियति ने चलाया और मैं चलता रहा
 मैंने कोई योजना बनाई
 कोई गुरू

राहें खुलती रहीं
मैं क़दम बढ़ाता रहा

जितना मैं धन्यवाद देता रहा
उतनी ही मेरी झोली भरती रहीं

जितना मैं ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत समझता रहा
उससे अधिक मुझे ख़ुशी मिलती रही

जितना मैं देता रहा
उससे कई गुना पाता रहा

बचपन में सुना था
तुम एक पैसा दोगे
वो दस लाख देगा

विडम्बना तो यह है कि
सिवाय धन्यवाद मैंने
आज तक किसी को
एक पैसा भी नहीं दिया 

राहुल उपाध्याय  10 अक्टूबर 2019  सिएटल

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