चिट्ठी कोई लिखता नहीं है
बिन बुलाए कोई घर आता नहीं है
और पतझड़ है कि
रंग-बिरंगी संदेश घनेरे
बरसा रहा है
दर पर मेरे
कुछ तो इतने आतुर
कि घुस आए घर में
क़दमों से लिपटे
रंग इतने कि इन्द्रधनुष लजाए
आकार इतने कि गिने न जाए
इनसे मेरा क्या नाता है?
इनसे न मिलूँ तो इनका क्या जाता है?
क्यूँ इनका मैं फ़ोटो खींचूँ?
व्हाट्सैप के स्टेटस पे इन्हें लगाऊँ?
कैनवास पे मढ़ के दीवार सजाऊँ?
इनसे नहीं कोई नाता मेरा
तभी तो न इन्होंने, न मैंने इनको
आज तलक कोई ताना मारा
जब आते हैं
अच्छे लगते हैं
जब जाते हैं
सपने लगते हैं
मधुर, सरस, सुवास, सुहाने
प्रियकर इतने जितने न प्रियकर से भी प्रियकर गाने
चिट्ठी कोई लिखता नहीं है
बिन बुलाए कोई घर आता नहीं है
और पतझड़ है कि ...
राहुल उपाध्याय । 25 अक्टूबर 2019 । सिएटल