Friday, October 25, 2019

चिट्ठी कोई लिखता नहीं है

चिट्ठी कोई लिखता नहीं है
बिन बुलाए कोई घर आता नहीं है
और पतझड़ है कि
रंग-बिरंगी संदेश घनेरे
बरसा रहा है 
दर पर मेरे
कुछ तो इतने आतुर
कि घुस आए घर में
क़दमों से लिपटे

रंग इतने कि इन्द्रधनुष लजाए
आकार इतने कि गिने  जाए 

इनसे मेरा क्या नाता है?
इनसे  मिलूँ तो इनका क्या जाता है?
क्यूँ इनका मैं फ़ोटो खींचूँ?
व्हाट्सैप के स्टेटस पे इन्हें लगाऊँ?
कैनवास पे मढ़ के दीवार सजाऊँ?

इनसे नहीं कोई नाता मेरा
तभी तो  इन्होंने मैंने इनको
आज तलक कोई ताना मारा

जब आते हैं
अच्छे लगते हैं
जब जाते हैं
सपने लगते हैं
मधुरसरससुवाससुहाने
प्रियकर इतने जितने  प्रियकर से भी प्रियकर गाने

चिट्ठी कोई लिखता नहीं है
बिन बुलाए कोई घर आता नहीं है
और पतझड़ है कि ...

राहुल उपाध्याय  25 अक्टूबर 2019  सिएटल

Thursday, October 10, 2019

कहाँ से चला, कहाँ मैं आज

कहाँ से चलाकहाँ मैं आज
कर्क रेखा से उड़ाहूँ पैतालिस के पार
सर्दी-गर्मी-बरसात के झंझट से दूर
है वातानुकूलित निवास

एक ग़रीब सा तबक़ा 
होंगी कोई सौ-दो-सौ झोपड़-पट्टी
जहाँ पाँच बसें सुबह आती थीं
शाम को चार
 था डॉक्टर
 कोई उपचार
स्कूल भी जाना हो
तो जाते थे रतलाम 
ऐसा था शिवगढ़
मेरा जन्मस्थान 

आमदनी के नाम पर भी
कहाँ था कुछ ख़ास
किसी की नहीं थी
कोई नियमित आय
या कोई स्थायी नौकरी
कोई पान बेचता था
कोई बीड़ी
कोई मिठाई
कोई दूध
कोई नाई
तो कोई बढ़ई 

वहाँ से आज मैं हूँ समामिश में
अमेरिका के एक ऐसे शहर में 
जहाँ के निवासियों की 
पूरे अमेरिका में हैं सबसे अधिक आय

हैं घर-गाड़ी-सारे ऐश--आराम
जिस सुविधा की कल्पना करो
वही सहज मुहैया आज

कहाँ से चला
कहाँ मैं आज

सच कहूँ तो मैं चला ही कहाँ
मुझे नियति ने चलाया और मैं चलता रहा
 मैंने कोई योजना बनाई
 कोई गुरू

राहें खुलती रहीं
मैं क़दम बढ़ाता रहा

जितना मैं धन्यवाद देता रहा
उतनी ही मेरी झोली भरती रहीं

जितना मैं ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत समझता रहा
उससे अधिक मुझे ख़ुशी मिलती रही

जितना मैं देता रहा
उससे कई गुना पाता रहा

बचपन में सुना था
तुम एक पैसा दोगे
वो दस लाख देगा

विडम्बना तो यह है कि
सिवाय धन्यवाद मैंने
आज तक किसी को
एक पैसा भी नहीं दिया 

राहुल उपाध्याय  10 अक्टूबर 2019  सिएटल