गाड़ी चाहे टेस्ला हो
या हण्डाई
नारियल तोड़ ही दिया जाता है
इस कार का
एक्सीडेंट होगा या नहीं
यह दु:ख देगी या सुख
यह इस बात पर निर्भर करता है
कि इसके टायर के नीचे
कितने नींबू कुचले गए
चार लाख का घर हो
या चालीस लाख का
सत्यनारायण की कथा
करवा ही ली जाती है
क्या पता कोई बला टल ही जाए
एक ही किताब को
हर मंगल को बाँचने में
एक-डेढ़ घण्टा ख़राब
हो भी जाए तो क्या?
क्या पता जीवन
मंगलमय हो जाए?
संस्कृति और धर्म के बीच
जब अंतर कम होता नज़र आए
सब धुँधलाता जाए
तो एक बार नए सिरे से
सोच विचार कर लेना
लाज़मी हो जाना चाहिए
राहुल उपाध्याय । 31 दिसम्बर 2019 । सिएटल