Sunday, December 15, 2019

जिस देश में निर्भया मरती है

 होंठों पे सच्चाई रहती है
 सड़कों पे सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में निर्भया मरती है

ज़्यादा नहीं थोड़े ही दिन
जनता आक्रोश में रहती है
फिर अपने-अपने घरों में बंद
क्रिकेट ही देखा करती है

करोड़ों की है आबादी
और दो-चार ही आवाज़ उठती है

कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं 
विकास के आँकड़े बखानते हैं
कोई मर जाए तो इनको क्या
मृतकों की क़ीमत नापते हैं

पाँच-पाँच लाख दे-दे के
सरकार अपना कर्म पूरा करती है

नेता जो हमारे होते हैं
वो हैलिकॉप्टर से दौरा करते हैं
ज़मीं के हालातज़मीं के लोग
उन सबको को कहाँ पहचानते हैं 

कुर्सी की महज़ है राजनीति
कुर्सी से ही चिपकी रहती है

जो जिससे मिला लिया हमने
अपनों को भी नहीं छोड़ा हमने
मतलब के लिए वीसा लेकर 
विदेशों में भी लार टपकाई हमने

अब हम तो क्या सारी दुनिया
सारी दुनिया से कहती है

हम उस देश के वासी हैं 
जिस देश में निर्भया मरती है

(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय  15 दिसम्बर 2019  सिएटल

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