हाथ धोते वक्त बाँहें चढ़ाना
सबको पता है, किसको बताना
सबने सीखा है अपने ही दुख से
सुख ने कभी कुछ किया भला ना
सोच-समझ के बस मंज़िल मिली है
जो बिन सोचे पाई वही बनी फ़साना
कब कहाँ मैंने किस को बताया
सब को पता है मेरी जान-ए-जानां
ये दिल मेरा कोई समंदर हो जैसे
जो भी आया उसे अपना ही माना
राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2024 । सिएटल