Monday, October 28, 2024

काम भी बस एक हैडएक है

काम भी बस एक हैडएक है

लेनी मुझे भी एक ब्रेक है


ज़िन्दा जला देंगे एक दिन ये

सारी प्रेज़ बस फेक है 


नेकी कर न दरिया में डालें

पर्यावरण बिगड़ेगा ये मिस्टेक है


जितना कमाऊँ पूरा पड़ता नहीं 

टेक आउट से ध्वस्त मेरी इनटेक है


चुनूँ किसे चुनाव सर पर है

न इधर, न उधर कोई विवेक है


राहुल उपाध्याय । 28 अक्टूबर 2024 । सिएटल 




Saturday, October 26, 2024

इतवारी पहेली: 2024/10/27


इतवारी पहेली:


उस दिन बारिश में उसका भी दामन ## #

यही है उसकी भी कहानी और मेरी # ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 3 नवम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 27 अक्टूबर 2024 । सिएटल 




Re: इतवारी पहेली 2024/10/20



On Sun, Oct 20, 2024 at 6:58 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


सत्तर-अस्सी नहीं, खाओ # ##

सीधी सी बात है, क्यूँ लगे ###?


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 27 अक्टूबर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 20 अक्टूबर 2024 । सिएटल 




Sunday, October 20, 2024

इतवारी पहेली 2024/10/20


इतवारी पहेली:


सत्तर-अस्सी नहीं, खाओ # ##

सीधी सी बात है, क्यूँ लगे ###?


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 27 अक्टूबर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 20 अक्टूबर 2024 । सिएटल 




Re: इतवारी पहेली 2024/10/13



On Sun, Oct 13, 2024 at 1:12 AM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


पीकर नहीं, बेच कर मिला उन्हें इतना ### # से

कि मोदी जी आज निकाल रहे हैं सबको ##%# से


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 20 अक्टूबर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 613 अक्टूबर 2024 । सेन होज़े 




Sunday, October 13, 2024

इतवारी पहेली 2024/10/13


इतवारी पहेली:


पीकर नहीं, बेच कर मिला उन्हें इतना ### # से

कि मोदी जी आज निकाल रहे हैं सबको ##%# से


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 20 अक्टूबर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 613 अक्टूबर 2024 । सेन होज़े 




Wednesday, October 9, 2024

आज नया है, कल पुराना होगा

आज नया है

कल पुराना होगा

इस घर को कल

गिराना होगा


नयी है टेबल

नया है सोफ़ा 

इन सबको भी कल

हटाना होगा


टूटेगी छत

गिरेगी दीवार

नींव को भी जड़ से

मिटाना होगा


कपड़ों के रंग

फीके पड़ जाते हैं 

कॉलर कहीं-कहीं से

फट जाते हैं 


कार का ट्रांसमिशन 

बिगड़ जाता है 

एक्सीडेंट में एक दिन 

काया का कचूमर निकल जाता है 


कपड़े 

फ़र्नीचर

कार

घर

मैं

तुम

कुछ भी स्थायी नहीं है 

कुछ दो साल

कुछ दस साल

कुछ बीस, कुछ पचास 

कुछ सौ साल चलते हैं 

धराशायी सब होते हैं 

फेंक सब दिए जाते हैं 


ज़मीं जैसी है वैसी रहती है 

आत्मा जैसी है वैसी रहती है 


राहुल उपाध्याय । 9 अक्टूबर 2024 । सिएटल 

Friday, October 4, 2024

एक रस्सी, एक आदमी

हज़ारों वर्षों में

न जाने कितना

विकास हो चुका है 

और आज भी 

नाव बाँधी जाती है 

एक जंग लगे खूँटे से

एक रस्सी से

एक आदमी द्वारा 

कोई मशीन नहीं 

कोई उपकरण नहीं 

कोई ऑटोमेशन नहीं 

कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नहीं 


राहुल उपाध्याय । 4 अक्टूबर 2024 । कवाई, हवाई