और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं
लोग मिलते हैं, जुदा होते हैं
हर कोई साथ है पानी की तरह
टिकने वाले न जमा होते हैं
हाथ उठते ही नहीं दुआ में मेरे
हाथ इसलिए तो न अता होते हैं
अब तलक प्यार है हमें उनसे
बस इसलिए वो ख़फ़ा होते हैं
मिलना-जुलना, हँसते-हँसाते रहना
सारे रोगों की दवा होते हैं
राहुल उपाध्याय । 2 नवम्बर 2025 । सिएटल
(पहली दो पंक्तियाँ आनन्द बक्षी द्वारा लिखे इस गीत से ली गईं हैं
https://youtu.be/SlRtQMkTkvQ?si=9-Q6Pgg2JImzw0he
)
अहद-ए-वफ़ा = वफ़ा की दुनिया
अता = अनुदान

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