शहर शहर
गांव गांव
जिधर देखा
नज़र आई
देश की दयनीय दशा
गली गली
नगर नगर
दिशाहीन देश में
डिश ही नज़र आई
जिसे मिल रही है सही दिशा
शहर शहर
गांव गांव
अग्रसर है घोर निशा
इधर उधर
यहाँ वहाँ
मारे मारे फ़िरते युवा
रोशनी की जगह मिले
अंधा कर दे ऐसा धुआ
डगर डगर
नहर नहर
हाथ मलें रगड़ रग़ड़
छूटे नहीं मैल मगर
जब वहीं सर चढ़े
चित्त हो बड़े बड़े
हावी है इस कदर
दौलत का नशा
बस्ती बस्ती
कस्बा कस्बा
दिल्ली
19 जनवरी 2008
Monday, January 21, 2008
देश, डिश और दिशा
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:55 AM
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1 comments:
badi saralata se aapne likha hai - desh ki durdasha.
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