Thursday, February 26, 2009

ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी

ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो पुरूस्कार की रात
उनके निर्णय पे निर्भर हमारी औकात की रात

हाय वो रेशमी कालीन पे फ़ुदकना उनका
रटे-रटाए हुए तोतों सा चहकना उनका
कभी देखी न सुनी ऐसी टपकती लार की रात

हाय वो स्टेज़ पे जाकर के गाना जय हो
एक भी शब्द जिसका न समझ आया जज को
फिर उसी गीत को कहते हुए शाहकार की रात

जो न समझे हैं न समझेंगे 'दीवार' की माँ को कभी
जो न सुनते हैं न सुनेंगे
गुलज़ार के गीतों को कभी
उन्हीं लोगों के हाथों से लेते हुए ईनाम की रात

अभी तक तो करते थे सिर्फ़ बातें ही अंग्रेज़ी में वो
आज के बाद बनाने भी लगेंगे फ़िल्में अंग्रेज़ी में वो
गैर के सराहते ही मिटते हुए स्वाभिमान की रात


क्या किया
पीर ने ऐसा कि धर्म तक छोड़ा उसने?
क्या दिया धन ने हमें ऐसा कि देश भी छोड़ा हमने?
दिल में तूफ़ान उठाते हुए जज़बात की रात

सिएटल 425-445-0827
26 फ़रवरी 2009
(
साहिर से क्षमायाचना सहित)
====================
शाहकार = कला संबंधी कोई बहुत बड़ी कृति

Tuesday, February 17, 2009

एक तरफ़ा प्यार


न थी
न हैं
न होंगी कभी
सांसों में मेरी
सांसे तेरी

फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
खुशबू
फूलों में तेरी

न थे
न हैं
न होंगे कभी
गेसू तेरे
कांधों पे मेरे

फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
अम्बर पर
बादल घनेरे

न था
न है
न होगा कभी
चेहरा तेरा
हाथों में मेरे

फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
दुआ
हाथों में मेरे

न थे
न हैं
न होंगे कभी
गालों पे तेरे
चुम्बन मेरे

फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
सपनों में
साए तेरे

न थी
न है
न होगी कभी
दुनिया तेरी
दुनिया मेरी

फिर भी सनम
चाहूँगा तुझे
जब तक है
दूरी
तुझसे मेरी

सिएटल,
17 फ़रवरी 2008

Saturday, February 14, 2009

अमर प्रेम

जब जब तुमसे मिलने आता हूँ
तो सोचता हूँ
तुम न मिलो तो ही अच्छा है
जब जब तुमसे मिलता हूँ
तो सोचता हूँ
तुम जुदा न हो तो ही अच्छा है

मैं इतने दिनों तक
हैरान था
परेशान था
कि तुम ने मुझे स्वीकारा नहीं
तो क्यूँ ठुकराया भी नहीं?

अब समझ में आया कि
असली प्यार तो वही है
जिसमें चाहत अभी बाकी है

तुम मुझसे मिलती रहना
मगर मेरी हरगिज़ न बनना

अब समझ में आया कि
असली प्यार तो वही है
जो वर्जित है

तुम मुझसे मिलती रहना
मगर वैध रिश्ता हरगिज़ न बनाना

सच तो यही है कि
प्रेमी-प्रेमिका के मिलाप के साथ ही
अक्सर प्रेम कहानी खत्म हो जाती है

तुम स्वीकारती
तो चाहत खत्म हो जाती
तुम ठुकराती
तो नफ़रत हो जाती
ये आग जो लगी हुई है
इसे बनाए रखना
शांत कर के
इसे राख हरगिज़ न होने देना

मैं चोरी-छुपे
सब के सामने
तुमसे मिलता रहूँगा
तुम्हें निहारता रहूँगा
तुम्हें चाहता रहूँगा

पर कभी नहीं कहूँगा
कि तुम बहुत सुंदर हो
कि तुम मेरे दिल में बसी हो
कि मुझे तुम से प्यार है

क्यूँकि जो बात हम कह नहीं पाते
वो दिल, दिमाग और ज़ुबान पर
हमेशा रहती है

अगर कह दिया तो
भूल जाऊँगा कि कभी
मैंने तुमसे ये कहा था

न कहूँ तो
हमेशा याद रहेगा कि कभी
मैंने तुम से ये कहा नहीं

Thursday, February 12, 2009

फूल तुम्हें भेजा है ख़त में

फूल तुम्हें भेजा है ख़त में
फूल नहीं मेरा दिल है
प्रियतम मेरे मुझको लिखना
क्या ये तुम्हारे काबिल है?

'फ़ूल' मुझे समझा है तुमने
या मिला तुम्हें 'भेजा' कम है?
फूल नहीं आता ई-मेल में
आता सिर्फ़ इक आईकन है

फूल जो असली भेजा होता
दो दिन में मुरझा जाता
आईकन की है बात निराली
हर दिन इसका रूप सुहाता

कंजूसी का काम हो करते
फिर गढ़ते हो झूठी कहानी
ऐसी प्रीत से हासिल क्या है?
कैसे कटेगी ये ज़िंदगानी?

सारी ख़्वाहिशें पूरी करूँगा
हाथ तुम्हारा हाथ में होगा
ओबामा से स्टिमुलस मिलेगा
पे-चैक भी तब हाथ में होगा

आओ मिल कर प्यार करें
और बंद करें आपस की लड़ाई
रिसेशन है तो रिसेशन से निपटें
इसी में है हम सब की भलाई

फूल तुम्हें भेजा है ख़त में
हाँ, फूल नहीं इक आईकन है
समझ सको तो समझना इसको
इसी को कहते जीवन है

प्यार करेंगे तुमसे तब तक
जब तक सीने में दिल है
पास नहीं है पैसा तो क्या
प्यार का कहीं बनता बिल है?

सिएटल 425-445-0827
12 फ़रवरी 2009
(
इंदीवर से क्षमायाचना सहित)
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फूल = flower; फ़ूल = fool; भेजा = 1. sent 2. brain
ई-मेल = e-mail; आईकन = icon; ओबामा = Obama;
स्टिमुलस = stimulus; पे-चैक = pay-cheque; रिसेशन = recession

Sunday, February 8, 2009

मुझे सफ़ाई पसंद है

मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
मैं औरों की तरह नहीं हूँ
कि घर में कबाड़ इकट्ठा किए जा रहे हैं
जैसे कि दूध खतम हो गया
तो बोतल में दाल भर ली
बिस्किट खतम हो गए
तो डब्बे में नमकीन भर लिया
अखबार पुराना हो गया
तो उससे किताब पर कवर चढ़ा लिया
या अलमारी में बिछा दिया

इतना भी क्या मोह?
कब तक पुरानी यादों को ढोता रहे कोई?

मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर
फ़ेंकता भी हूँ तो बड़े एहतियात के साथ
पर्यावरण की चिंता जो है
यहाँ कागज़
यहाँ काँच
यहाँ प्लास्टिक
और यहाँ माता-पिता
एक वक्त ये भी बहुत काम के थे
माँ दूध पिलाती थी
लोरी सुनाती थी
पिता गोद में खिलाते थे
कंधों पे बिठाते थे
और अब
माँ दिन भर छींकती है, कराहती है
पिता रात भर खांसते हैं, बड़बड़ाते हैं

मुझे इस्तेमाल कर के फ़ेंक देना अच्छा लगता है
कितना साफ़-सुथरा सा हो जाता है घर

सिएटल 425-445-0827
8 फ़रवरी 2009

Saturday, February 7, 2009

मेरी परीक्षा ले कर तो देखो

मैं कोई भीष्म पितामह तो नहीं
लेकिन इतना कमजोर भी नहीं
कि तुम फोन करो
और मैं फोन उठा लूँ
तुम
एक बार
फोन कर के तो देखो

मैं कोई तपस्वी तो नहीं
लेकिन इतना गया-गुज़रा भी नहीं
कि तुम मुस्कराओ
और मैं पिघल जाऊँ
तुम
एक बार
मुस्करा कर तो देखो

मैं कोई देशभक्त तो नहीं
लेकिन एक एन-आर-आई भी नहीं
कि तुम चंद सिक्के दो
और मैं देश छोड़ दूँ
तुम
एक बार
चंद सिक्के दे कर तो देखो

सिएटल.
7 फरवरी 2009

Wednesday, February 4, 2009

पहेली 29

मन में उठी कुछ ऐसी ??? (3)
पसीने से नहा, हुआ ?? ?? (4)

काँप रहा था हर ?? ?? (4)
कोई था वहाँ, जहाँ था ??? (3)

उदाहरण:

कुछ इस हद तक उन पर मेरा मन आया था (2,2)
कि हज़ार बार रूठने पर भी मैंने उन्हें मनाया था (3)

एक दिन एक ऐसा अपशकुन एक चील लाई थी (2, 2)
कि वे बेवजह मुझ पर चीखी और चिल्लाई थी (3.5)

और बड़ी बेरहमी से उन्होंने छोड़ दी मेरी कलाई थी (3)
एक लम्बे अरसे के बाद उनकी चिट्ठी कल आई थी (2, 2)

अधिक मदद के लिए अन्य पहेलियाँ यहाँ देखें:
http://mere--words.blogspot.com/search/label/riddles_solved

पहेली 27 का उत्तर

पहेली 27: http://mere--words.blogspot.com/2009/01/27.html

कुछ इस हद तक उन पर मेरा मन आया था (2,2)
कि हज़ार बार रूठने पर भी मैंने उन्हें मनाया था (3)

एक दिन एक ऐसा अपशकुन एक चील लाई थी (2, 2)
कि वे बेवजह मुझ पर चीखी और चिल्लाई थी (5)

और बड़ी बेरहमी से उन्होंने छोड़ दी मेरी कलाई थी (3)
एक लम्बे अरसे के बाद उनकी चिट्ठी कल आई थी (2, 2)

Tuesday, February 3, 2009

मौत का मीटर - एक समाचार, दो कविताएँ

समाचार - 93 वर्षीय अमीर व्यक्ति की अपने ही घर में ठंड से ठिठुर कर मौत हो गई। कारण? वो अकेला था।
पूरा समाचार यहाँ देखें -
http://mere--words.blogspot.com/2009/02/blog-post.html

रहते हैं यारो वे भी उदास

रोटी, कपड़ा, घर जिनके पास
रहते हैं यारो वे भी उदास

सुख-सुविधा के लिए
पाई-पाई जोड़ते हैं
काम जो देता है
उसके हाथ-पाँव जोड़ते हैं
आस-पड़ोस से
मुख मोड़ लेते हैं
खून का रिश्ता तक
भाई-भाई तोड़ देते हैं

रुपयों-पैसों से ही मिलता सुख नहीं
समझ में आता है जब बचता कुछ नहीं

अपना न हो
जब कोई पास
लाख कमा लो
मन रहता उदास

दुकान-दुकान
सब सामान मिले
बात जो समझे
नहीं वो इन्सान मिले

रोटी, कपड़ा, घर जिनके पास
रहते हैं यारो वे भी उदास

सिएटल,
31 जनवरी 2009

हम सब एक है

स्विच दबाते ही हो जाती है रोशनी
सूरज की राह मैं तकता नहीं

गुलाब मिल जाते हैं बारह महीने
मौसम की राह मैं तकता नहीं

इंटरनेट से मिल जाती हैं दुनिया की खबरें
टीवी की राह मैं तकता नहीं

ईमेल-मैसेंजर से हो जाती हैं बातें
फोन की राह मैं तकता नहीं

डिलिवर हो जाता हैं बना बनाया खाना
बीवी की राह मैं तकता नहीं

खुद की ज़रुरते हैं कुछ इतनी ज्यादा
कारपूल की चाह मैं रखता नहीं

होटले तमाम है हर एक शहर में
लोगों के घर मैं रहता नहीं

जो चाहता हूं वो मिल जाता मुझे है
किसी की राह मैं तकता नहीं

किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं

कपड़ो की सलवट की तरह रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं
रिश्ता यहाँ कोई कायम रहता नहीं

तत्काल परिणाम की आदत है सबको
माइक्रोवेव में तो रिश्ता पकता नहीं

किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं

सिएटल
19 दिसम्बर 2007

मौत का मीटर - एक समाचार

बे सिटी, मिशिगन - 17 जनवरी को जब पड़ोसी 93 वर्षीय मारविन शूर के घर के अंदर गए, खिड़कियों पर बर्फ़ जमी हुई थी, नलके से बर्फ़ लटक रही थी, और शयन कक्ष के फर्श पर शूर मृत पाए गए - चार कपड़ों की पर्त के उपर उन्होंने एक गर्म जैकेट भी पहन रखी थी। वे ठँड से ठिठुर कर मरे - धीरे-धीरे और दर्द के साथ - ऐसा अधिकारियों ने बताया। बिजली कंपनी के एक विशेष मीटर लगाने के दो दिन बाद यह दु:खद घटना घटी। चूँकि उन्होंने बिजली के पिछले चार महीनों के बिल (कुल $1000 के करीब) नहीं चुकाए थे इसलिए यह मीटर लगाया गया था।

सबसे दु:ख की बात तो यह है कि शूर के पास प्रचुर मात्रा में धन था। एक पड़ोसी के अनुसार, उनकी किचन की मेज पर बिल के ढेर के साथ डाँलर भी रखे हुए थे। शूर के भतीजे ने बताया कि शायद उनकी याददाश्त कमज़ोर हो रही होगी। भतीजे ने यह भी बताया कि दो साल पहले शूर ने उसे बताया था कि उनके पास $600,000 बैंक में है।

"आज के कंप्यूटर युग में कोई तो तरीका होगा जिससे कि बिजली वाले पता लगा सके कि किसी की उम्र कितने से उपर है", ऐसा एक पड़ोसी ने कहा।

शूर सेवा-निवृत्त थे और अकेले रहते थे। पत्नी की दो साल पहले मृत्यु हो गई थी। उनके कोई सन्तान नहीं थी।
13 जनवरी को, चार महीने तक बिजली का बिल न भरने के बाद, बिजली कम्पनी के एक कार्यकर्ता ने शूर के घर पर बिजली का एक नया मीटर लगाया। यह मीटर एक फ़्यूज़ की तरह काम करता है और जब बिजली का उपयोग एक निर्धारित स्तर से उपर उठ जाता है तो घर की बिजली गुल हो जाती है। बिजली तब तक बहाल नहीं होती जब तक कि घर में रहने वाले बाहर जा कर इसे फिर से चालू न करें। इस मीटर के लगाने के बाद बिजली कम्पनी ने शूर को आमने-सामने बात कर के इसकी सूचना नहीं दी। सिर्फ़ दरवाजे पर एक कागज़ छोड़कर चले गए। लेकिन ठंड के दिनों में शूर कभी-कभार ही घर से बाहर निकलते थे। मीटर लगाने के कुछ समय बाद, उनके घर की बिजली चली गई और शूर ने उसे फिर से चालू नहीं किया।

15 जनवरी के दिन बाहर का तापमान -9 से 12 डिग्री फ़ेरेनहाईट था और अनुमान है कि उनकी मौत उसी दिन हुई। ओवन का दरवाजा खुला हुआ था - शायद ठंड से जूझने के लिए।

डॉ. कनु वीरानी ने कहा कि "शरीर ज़िंदा रहने के लिए एक ज़बरदस्त लड़ाई लड़ता है। शूर एक धीमी और दर्दनाक मौत मरें।"

"यह निश्चित रूप से एसी स्थिति नहीं है, जहाँ पैसा एक मुद्दा है. वे नियमित रूप से पिछले पचास वर्षों से बिल का भुगतान करते आ रहे थे। अगर कम्पनी अपने ग्राहको को जानती-पहचानने की कोशिश करती तो ये त्रासदी न होती। दरवाजे पर दस्तक दे कर देखती तो सही कि सब कुछ ठीक है या नहीं।" ऐसा 67 वर्षीय वालवर्थ ने कहा।

पूरा समाचार यहाँ देखें - <
http://www.foxnews.com/story/0,2933,484724,00.html>