Monday, April 13, 2009

इंडिया में ऐसा कहाँ लगता अजीब है

इंडिया में ऐसा कहाँ लगता अजीब है
कि नोट से नेता सीट लेता खरीद है

डूबे ही रहते हैं वोटर सारे
उनको न कोई माझी पार उतारे
हर पाँच साल फिर फ़ूटता नसीब है

गली-गली घूमते हैं गुंडे-हत्यारे
उनकी ही 'जय हो' के लगते हैं नारे
भलामानुस सदा चढ़ता सलीब है

आज है जिनके ये कट्टर दुश्मन
कल को उन्हीं से जोड़ें ये गठबंधन
राजनीति का एक अपना गणित है

पार्टी है नाम की और चमचे हैं नेता
होता वही जो चाहें माँ और बेटा

जनतंत्र का धीरे-धीरे बुझता प्रदीप है

भाग्य भरोसे जीती जनता बिचारी
जीती कभी न वो हमेशा है हारी
भाग्य विधाता कर देता मट्टी पलीद है

कर्मों की दुनिया के फ़ंडे निराले
कब किसको ये मारे किसको बचा ले
जनम-जनम की यहाँ कटती रसीद है

दूर-दूर रहते हैं पासपोर्ट वाले
उनमें से कोई आ के वोट न डाले
उनकी वजह से देश का उजड़ा भविष्य है

आपस में लड़ते हैं दिमाग वाले
एकजुट हो के यदि हाथ मिला ले
फिर देखो कैसे उल्लू बनता वज़ीर है

सिएटल 425-445-0827
13 अप्रैल 2009
(
आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
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इंडिया = India; वोटर = voter; सलीब = सूली

फ़ंडे = fundaes

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Anand Bakshi


4 comments:

Anil Pusadkar said...

भाग्य भरोसे जीती जनता बिचारी,

बहुत बधिया,सटीक और सामयिक्॥

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वाह! मज़ा आ गया

संगीता पुरी said...

अच्‍छी व्‍याख्‍या की ... आज के राजनीतिक हालात की।

जयंत - समर शेष said...

अति सुन्दर...
बहुत कड़वी और सटीक कविता...
काश के हम नींद से जाग जाते....

~जयंत चौधरी