फूलों की बगिया ज्यों किश्तों में खिलती है
इंसां की किस्मत भी किश्तों में जगती है
भला छाते ही बादल कहीं बरखा भी होती है?
होने-बरसने में यारो इक उम्र गुज़रती है
मिलना-बिछड़ना, व हँसना व रोना
इन के ही मिश्रण से शख़्सियत निखरती है
जब आता है संकट, हम खुद को परखते हैं
और मूल्यों-विश्वासों की दुनिया सँवरती है
जब होता है मन का, तो लगता है अच्छा
जब मन का न हो, तभी तो मणियाँ निकलती हैं
सिएटल
19 नवम्बर 2009
Thursday, November 19, 2009
मणियाँ
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:01 PM
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2 comments:
mast bat kahi hai relationship between nature and human
मिलना-बिछड़ना, व हँसना व रोना
इन के ही मिश्रण से शख़्सियत निखरती है
जब आता है संकट, हम खुद को परखते हैं
और मूल्यों-विश्वासों की दुनिया सँवरती है
जब होता है मन का, तो लगता है अच्छा
जब मन का न हो, तभी तो मणियाँ निकलती हैं
बहुत सुन्दर..!!
- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'
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