जहाँ से हम आए हैं
वहीं हमें जाना हैं
ज़मीं से आए हैं
ज़मी में समाना है
रंगीं हो पत्ते
या काले हो बादल
अंत तो सभी का
वही पुराना है
बड़े से आसमां में
मैं ढूंढता था जिसको
टेका जो माथा तो
उसे यहीं पे जाना है
अब गली-गली हाथ फैलाए
मैं भीख मांगूँगा नहीं
क्योंकि कदमों तले मेरे
गड़ा खजाना है
'गर होता वो उपर
तो सोचो आस्ट्रेलिया का क्या होता?
जहाँ हूँ मैं
वहीं उसका ठिकाना है
सिएटल 425-898-9325
6 नवम्बर 2009
Friday, November 6, 2009
जहाँ हूँ मैं वहीं उसका ठिकाना है
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:10 AM
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2 comments:
जहाँ से हम आए हैं
वहीं हमें जाना हैं
ज़मीं से आए हैं
ज़मी में समाना है
Bahut achhi lagi kavita. Sabkuch to yahin rah jaata hai lekin phir dekho tera-mera ke pher mein kaise pade rahate hai sabhi. Kash ye isse uthkar sabhi soch paate to duniya kitni khubsurat hoti ...
Badhai sweekare
बहुत बढिया...
हँसते रहो पर एक चित्र पहेली चल रही है...आपका चित्र भी उसमें शामिल किया जा रहा है ..
http:hansteraho.blogspot.com
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