Saturday, October 31, 2009

देख तेरे एन-आर-आई की हालत

देख तेरे एन-आर-आई की हालत
क्या हो गई भगवान
कितना बदल गया शैतान
कितना बदल गया शैतान

हंस की चाल कौआ ज्यों चलता
मूँछ मुड़ा बंदा ये विचरता
खान-पान, परिधान ये बदले
बोल-चाल व नाम भी बदले
बदले ये पहचान

अपनी धरोहर न अपनाना चाहे
दूर-दूर उससे रहना चाहे
भूल चुका जो अपनी ज़ुबाँ को
मान न दे जो अपनी माँ को
एन-आर-आई वो संतान

पढ़ा लिखा के देश ने सींचा
फल वो पाए जो दे दे वीसा
ऐसी कैसी कौम ये ईश्वर
देश की निंदा करे निरंतर
कहे भारत श्मशान

जहाँ भी देखे रुपया-पैसा
वहीं पे डाले अपना डेरा
सूट में लेकिन लगे भिखारी
जिसमें नहीं स्वाभिमान

बन के मेहमां देश में आए
एक भी दमड़ी खर्च न पाए
तरह-तरह की बात बनाए
अपने जहाँ के गीत वो गाए
गाए गौरों के गुणगान

सुख-सुविधा का इतना आदी
बुरी लगे उसे अपनी माटी
माँ के हाथ का खा ना पाए
पानी हलक से उतर ना पाए
करे तुरंत प्रस्थान

सिएटल | 425-898-9325
31 अक्टूबर 2009
(प्रदीप से क्षमायाचना सहित)

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2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

सियटल में रहकर एन आर आई की बुराई? जब हम भोगवादी दृष्टिकोण अपना लेते हैं तब यही होता है। आपने कटु सत्‍य लिखा है, अपने सर को बचा कर रखना। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Yogi said...

वैसे भी अपने देश में ऐसा क्या है जिस पर गौरव किया जा सके।
सरकार है, वहां वोट बैंक की राजनीति
पुलिस के पास चले जाओ, वो FIR लिखने के भी पैसे चाहिये उनको
Army का सुना है अच्छी है, पर अभी तक उस से पाला नहीं पड़ा।
अब ज़्यादा बुराई नहीं करना चाहूँगा, बाकी तो सब को पता ही है।

सभी जगह तो भ्रष्टाचार है। कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझता। खैर, 100 में से 99 बेइमान फिर भी मेरा भारत महान