बहारें रंग भरती हैं
कोहरा रंग चुराता है
भरने-लुटने के संवाद में
पत्तियों का रूप मनोरम हो जाता है
बावला बाबुल
वात्सल्य का अंधा
समझ नहीं कुछ पाता है
शाख बढ़ा कर
हाथ हिला कर
शू-शू करता जाता है
नटखट कोहरा
बाज न आए
इत-उत मंडराता है
कभी इधर से
कभी उधर से
पत्तियों को छूता जाता है
देख कुदरत की ऐसी झाँकी
मन मोहित हो जाता है
कवि हृदय कविता लिखता है
भँवरा गुन-गुन गुण गाता है
सिएटल 425-898-9325
9 अक्टूबर 2009
Friday, October 9, 2009
मनमोहक दृश्य
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:10 PM
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1 comments:
Wakaee manmohak.
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