Thursday, November 19, 2009

मणियाँ

फूलों की बगिया ज्यों किश्तों में खिलती है
इंसां की किस्मत भी किश्तों में जगती है

भला छाते ही बादल कहीं बरखा भी होती है?
होने-बरसने में यारो इक उम्र गुज़रती है

मिलना-बिछड़ना, व हँसना व रोना
इन के ही मिश्रण से शख़्सियत निखरती है

जब आता है संकट, हम खुद को परखते हैं
और मूल्यों-विश्वासों की दुनिया सँवरती है

जब होता है मन का, तो लगता है अच्छा
जब मन का न हो, तभी तो मणियाँ निकलती हैं

सिएटल
19 नवम्बर 2009

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2 comments:

Anonymous said...

mast bat kahi hai relationship between nature and human

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

मिलना-बिछड़ना, व हँसना व रोना
इन के ही मिश्रण से शख़्सियत निखरती है

जब आता है संकट, हम खुद को परखते हैं
और मूल्यों-विश्वासों की दुनिया सँवरती है

जब होता है मन का, तो लगता है अच्छा
जब मन का न हो, तभी तो मणियाँ निकलती हैं

बहुत सुन्दर..!!

- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'