जब खटखटाते थे द्वार
कहते थे घर जाइए आप
अब मरते हैं आज
तो पूछते हो
कैसे हैं आप?
हैटी की जनता की
यदि इतनी थी चिंता
तो करते मदद
जब थे वो ज़िंदा
जब कमा के खाने के लिए
आते थे वो
तरह-तरह के दाँव-पेंच निकाल के
भगा दिए जाते थे वो
मेहनत-मजूरी की कीमत
पाई-पाई से नापते हो तुम
और दान देते वक़्त
दोनों हाथ धन लुटाते हो तुम
ये कैसी है दुनिया
ये कैसे हैं लोग
है ज़िंदों पे शक़
और मरों से मोह
वो समाज समाज नहीं
है चीलों का गिरोह
है जिसे ज़िंदों पे शक़
और मरों से मोह
सिएटल । 425-445-0827
30 जनवरी 2010
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हैटी = Haiti
Saturday, January 30, 2010
त्रासदी
Posted by Rahul Upadhyaya at 8:31 PM
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Labels: news
Tuesday, January 26, 2010
भारत छोड़ो आंदोलन
गुर्रु पासपोर्ट
गुर्रु विसा
सुरूर भागने का सब पे चढ़ा
है भारत वो आज कहाँ
जो अंग्रेजों से था कभी लड़ा
जहाँ डाल-डाल पे उड़ने को
आतुर बैठी है चिड़िया
वो भारत देश है भैया
जहाँ सत्य, अहिंसा और धरम की
पग-पग उड़ती धज्जियाँ
वो भारत देश है भैया
जहाँ जो भी परिंदा
घर से निकला
लौट के फिर न आया
शौच के ढंग ने
सोच यूँ बदली
परदेस उसको भाया
भुल गया वो अपनी माटी,
अपने बापू-मैया
वो भारत देश है भैया
ये धरती वो जहाँ ॠषि-मुनि
जपते प्रभु नाम की माला
हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ, हरि ॐ
जहाँ अन्याय होता देख भी
उनके मुँह पे रहता ताला
जहाँ ईश्वर सबसे पहले खाए,
खाए खीर-सेवईयाँ
वो भारत देश है भैया
जहाँ आसमान से बाते करते,
नेता और सितारें
किसी नगर में, किसी समय पे,
किसी के काम न आते
उल्टा ठूँस-ठूँस वे माल दबाए,
दबाए करोड़ों रुपया
वो भारत देश है भैया
सिएटल 425-898-9325
(राजेन्द्र कृष्ण से क्षमायाचना सहित)
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:50 PM
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Labels: India
Thursday, January 7, 2010
वर्ष का आरम्भ
पहले प्रतीक्षा रहती थी वर्ष के आरम्भ की
क्यूंकि तब डायरी बदली जाती थी
पहले प्रतीक्षा रहती थी वर्षा के आरम्भ की
जो सावन की बदली लाती थी
अब कम्प्यूटर के ज़माने में डायरी एक बोझ है
और बेमौसम बरसात होती रोज है
बदली नहीं बदली
ज़िंदगी है बदली
बारिश की बूंदे जो कभी थी घुंघरु की छनछन
आज दफ़्तर जाते वक्त कोसी जाती हैं क्षण क्षण
पानी से भरे गड्ढे जो लगते थे झिलमिलाते दर्पण
आज नज़र आते है बस उछालते कीचड़
जिन्होने सींचा था बचपन
वही आज लगते हैं अड़चन
रगड़ते वाईपर और फिसलते टायर
दोनो के बीच हुआ बचपन रिटायर
बदली नहीं बदली
ज़िंदगी है बदली
कभी राम तो कभी मनोहारी श्याम
कभी पुष्प तो कभी बर्फ़ीले पहलगाम
तरह तरह के कैलेंडर्स से तब सजती थी दीवारें
अब तो गायब ही हो गए ग्रीटिंग कार्ड भी सारे
या तो कुछ ज्यादा ही तेज हैं वक्त के धारें
या फिर टेक्नोलॉजी ने इमोशन्स कुछ ऐसे हैं मारे
कि दीवारों से फ़्रीज और फ़्रीज से स्क्रीन पर
सिमट कर रह गए हैं संदेश हमारे
जिनसे मिलती थी कभी अपनों की खुशबू
आज है बस वे रिसाइक्लिंग की वस्तु
बदली नहीं बदली
ज़िंदगी है बदली
पहले प्रतीक्षा रहती थी वर्ष के आरम्भ की ...
सिएटल । 425-445-0827
7 जनवरी 2010
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वाईपर = wiper; टायर = tire; रिटायर = retire;
ग्रीटिंग कार्ड = greeting card; टेक्नोलॉजी = technology;
इमोशन्स = emotions; फ़्रीज = fridge;
स्क्रीन = screen; रिसाइक्लिंग = recycling
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:24 AM
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Labels: greetings
Monday, January 4, 2010
१ जनवरी का इंतज़ार
मैं हर साल
१ जनवरी का
बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करता हूँ
आँखें फ़ाड़े-फ़ाड़े ताकता रहता हूँ
कि जैसे ही वो दिखे
मैं उसे सीने से लगा लूँ
और एक पल के लिए भी उसे अलग न होने दूँ
जैसे
कोई
बस स्टॉप की
बेंच पर
बटुआ
ब्लैकबेरी
चश्मा
टोपी
या
छतरी
रख कर भूल जाए
और याद आने पर
उल्टे पाँव
दूसरी बस पकड़ कर
लौट आए
और आँखें फ़ाड़-फ़ाड़ कर ताके
कि जैसे ही वो दिखे
वो उसे सीने से लगा ले
और एक पल के लिए भी अलग न होने दे
अगर चोर-उचक्कों का मोहल्ला न हो तो
आशा और भी बढ़ जाती है
और इतने बड़े ब्रह्माँड में
जिस स्थान से
धरती एक साल पहले गुज़री थी
उस स्थान पर किसी और का आना
लगभग असम्भव ही है
इसलिए
मैं हर साल
१ जनवरी का
बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करता हूँ …
सिएटल । 425-445-0827
4 जनवरी 2010
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बस स्टॉप = bus stop
बेंच = bench
ब्लैकबेरी = Blackberry
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:27 AM
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