जब खटखटाते थे द्वार
कहते थे घर जाइए आप
अब मरते हैं आज
तो पूछते हो
कैसे हैं आप?
हैटी की जनता की
यदि इतनी थी चिंता
तो करते मदद
जब थे वो ज़िंदा
जब कमा के खाने के लिए
आते थे वो
तरह-तरह के दाँव-पेंच निकाल के
भगा दिए जाते थे वो
मेहनत-मजूरी की कीमत
पाई-पाई से नापते हो तुम
और दान देते वक़्त
दोनों हाथ धन लुटाते हो तुम
ये कैसी है दुनिया
ये कैसे हैं लोग
है ज़िंदों पे शक़
और मरों से मोह
वो समाज समाज नहीं
है चीलों का गिरोह
है जिसे ज़िंदों पे शक़
और मरों से मोह
सिएटल । 425-445-0827
30 जनवरी 2010
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हैटी = Haiti
Saturday, January 30, 2010
त्रासदी
Posted by Rahul Upadhyaya at 8:31 PM
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1 comments:
वाकई में घोर त्रासदी है. क्या कहिये ऐसे लोगों को जिनकी सीरत छिपी रहे. नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छिपी रहे.
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