जब तुम आई थी
तब कुछ कोपलें उग आई थी
और वसंत का आगमन हुआ था
अब वो फूल बन गई हैं
और शूल सी चुभती है
तुम मेरे कितने पास थी
और मैं तुमसे कितना दूर!
***
कहा था कि
फिर मिलेंगे हम
लेकिन
जैसे मिले थे कल
क्या फिर मिलेंगे हम?
***
झूठ है कि जीवन क्षणभंगुर है!
तुम चंद पलों के लिए आई थी
और अब मैं
अनगिनत
लम्बी रातें
गुज़ार रहा हूँ
तुम्हारी खुशबू
तुम्हरा अहसास
और तुम्हारी हर साँस
ओढ़ कर
झूठ है कि जीवन क्षणभंगुर है!
सिएटल । 425-445-0827
7 मार्च 2010
Sunday, March 7, 2010
जब तुम आई थी
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:52 PM
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Labels: intense, relationship, valentine
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1 comments:
nice poem.It is true that emotions make life longer.
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