Monday, December 27, 2010

अब तो मुझे तुम्हारा नाम भी ठीक से याद नहीं है

अब तो मुझे तुम्हारा नाम भी ठीक से याद नहीं है
और वैसे भी मैं तुमसे कभी मिला नहीं
और ही तुम्हें कभी देखा है
बस एक आवाज़ थी
जो हम दोनों के बीच
एक सेतु थी
अब वो भी कब की डूब चुकी है
बाढ़ के पानी में बह चुकी है
अब बाकी है तो सिर्फ़ एक हसीं हँसी
जो अब भी
महकती है
चहकती है
मेरी सांसों में
हर पल
हर घड़ी

नाम होता
तो -मेल भी होती
गूगल-फ़ेसबूक पर
ईमेज भी होती

चलो चलूँ अब साँस सहारे
जनम-जनम के रूप संहारे
कहाँ कहीं कब कौन किनारे
मिलो मुझे तुम हाथ पसारे?

मिलने की कोई राह नहीं है
मिलन का कोई आभास नहीं है
फिर भी जपूँ मैं सांझ सकारे
नाम किसीका नाम तुम्हारे

सिएटल
27 दिसम्बर 2010

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


3 comments:

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

ऐसा कभी होता है क्या नाम तक भूल जाएँ... तो शायद जिंदगी बहुत आसान होती. सुन्दर रचना!

Anonymous said...

दिल को छूने वाली कविता है! गाना याद आया:
"नाम गुम जायेगा चेहरा यह बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे..."

Anonymous said...

दिल को छूने वाली कविता है! गाना याद आया:
"नाम गुम जायेगा चेहरा यह बदल जायेगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे..."