Tuesday, June 4, 2013

अरमान थे अरमानी के

अरमान थे 'अरमानी' के
और डूब गया गुरबानी में
जीवन जीना कितना आसान
समझ न सका जवानी में


नाहक ही हक मैंने खोया
भरी जवानी बस्ता ही ढोया
रात-रात भर उल्लू सा जागा
माया के पीछे ही भागा


इससे तो अच्छा इश्क़ मैं करता
हर किसी को प्यार से तकता
जो मिलता उसे अपना कहता
हर हाल में, हर बात पे हँसता


जब नहीं है जग तेरा या मेरा
फिर क्यूँ बना मैं टेढ़ा-मेढ़ा?
जो होता है क्यूँ होने ना दूँ
बात-बात पे क्यूँ करूँ बखेड़ा?


कि ये ज़मीं मेरे नाम पे कर दो
इस एकाउंट में कुछ पैसे भर दो


नानक कहते थे सब तेरा-तेरा
मैं कहूँ बस मेरा-मेरा
ज़मीं-एकाउंट की बात तो छोड़ो
चम्मच-कटोरी पे भी नाम है मेरा


कभी अरमान थे 'अरमानी' के
अब डूब गया हूँ गुरबानी में
भोग-विलास से दूर अब भागूँ
सुकूं ढूंढूँ गुड़धानी में


4 जून 2013
सिएटल ।
513-341-6798

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अरमानी = Armani

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2 comments:

Anonymous said...

बहुत ही अच्छी कविता है। हम सभी के लिए जीवन का सार समझना आसान नहीं - समय और experience भी एक part play करते हैंI नानक ने सिखाया कि जीवन में तीन काम ज़रूरी हैं:

१. नाम जपना
२. कीरत करना
३. वंड के छकना

मुझे लगता है हर उम्र में सच्चे मन से मेहनत करना अच्छी बात है। लेकिन उस effort का purpose धन या ego का मोह नहीं होना चहिये। उसके पीछे अपनों को भुलाना भी ठीक नहीं।

कविता में बातें गहरी हैं और wordplay भी बहुत ही अलग है - "तेरा-मेरा" और "टेढ़ा-मेढ़ा", "गुरबानी" और "गुड़धानी" का use बहुत प्यारा लगा।

कविता बहुत बढ़िया लगी, राहुलजी। Please लिखते रहिये।

Madan Mohan Saxena said...

simply superb. Nice one
regards Madan