दो चीजे जब मिलती हैं
तो कुछ न कुछ तो नया पैदा होता है
सड़क से गटर
गटर से फ़ुटपाथ
फ़ुटपाथ से घर
घर से बालकनी
बालकनी से मुंडेर
हर जगह
जहाँ-जहाँ भी जोड़ है
प्रकृति से ओत-प्रोत है
लेकिन
हम अपनी मनपसंद के
फल, फूल और एक छायादार पेड़ को
पालने पोसने में
इतने स्वार्थी बन जाते हैं
कि
कुदरती हरियाली को
मिटा देते हैं
जड़ से उखाड़ देते हैं
और तो और
आगे
फिर कभी
उग न पाए
राऊंड-अप
और वीड-किलर्स
छिड़क देते हैं
हम पर
अपनी पसंद-नापसंद का भूत
कुछ इस कदर हावी है
कि
किसी और का होना तक
खटकने लगता है
दो जिस्म भी जब मिलते हैं ...
12 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798
तो कुछ न कुछ तो नया पैदा होता है
सड़क से गटर
गटर से फ़ुटपाथ
फ़ुटपाथ से घर
घर से बालकनी
बालकनी से मुंडेर
हर जगह
जहाँ-जहाँ भी जोड़ है
प्रकृति से ओत-प्रोत है
लेकिन
हम अपनी मनपसंद के
फल, फूल और एक छायादार पेड़ को
पालने पोसने में
इतने स्वार्थी बन जाते हैं
कि
कुदरती हरियाली को
मिटा देते हैं
जड़ से उखाड़ देते हैं
और तो और
आगे
फिर कभी
उग न पाए
राऊंड-अप
और वीड-किलर्स
छिड़क देते हैं
हम पर
अपनी पसंद-नापसंद का भूत
कुछ इस कदर हावी है
कि
किसी और का होना तक
खटकने लगता है
दो जिस्म भी जब मिलते हैं ...
12 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798
4 comments:
कविता अच्छी लगी! अभी कुछ दिन पहले "नितांत अकेलापन" पढ़ी थी और आज "कुदरती हरियाली" पढ़ी। मुझे बहुत interesting लगा कि एक में अकेलेपन और मरघट की बात थी और दूसरी में मिलन और कुछ नया पैदा होने की। कितना sharp contrast है दोनों कविताओं में! और दोनों ही पहलू कितने सच हैं!
कुदरत में मिलन है, चहक है और हमारी बनाई दुनिया में अलग होने के, सूनेपन के साधन हैं। शायद इसीलिए कुदरत से जुड़े फूल, पंछी, पौधे सदा खुश दिखते हैं। और हम धरती पे जन्म लेने को misery कहते हैं और प्रार्थना करते हैं कि जन्म-मरण के cycle से हमेशा के लिए छूट जाएँ।
कुदरत ने सॄजन किया और हमें सॄजनशील बने रहने के लिए प्रेरणा दायी पेड़-पंछी का जीवन साथ बनाया
हमें चाहिए कि स्वार्थी होनें से बचें और जीवन को खुशहाल बनाएं....
सीख देती कविता...
BOGAS
"हम पर
अपनी पसंद-नापसंद का भूत
कुछ इस कदर हावी है
कि
किसी और का होना तक
खटकने लगता है"
इस कविता में बात सही है कि हमारी likes-dislikes इतनी strong और defined बन गयी हैं कि हम उस boundary के बाहर किसी इंसान को या चीज़ को tolerate ही नहीं कर पाते, compassion से देख ही नहीं पाते। सिर्फ हमारी सोच, हमारी पसंद ही हमें सही लगती है।
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