Saturday, June 15, 2013

नानक न बन सके

जिसने भी कैलेंडर बनाया है
बहुत सोच समझ के बनाया है
ताकि कोई फिर
गलती से भी
तेरा-तेरा न कह सके
नानक न बन सके

15 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798

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5 comments:

Anonymous said...

सही बात है! :)

हिंदी में "तेरा-तेरा" नहीं तो शायद गुजराती में "तेरा छे, तेरा छे" कह सकते होंगे?

Calendar की तरह hotels और elevators भी सोच समझ कर बनाये गए हैं ताकि वहां भी कोई 'तेरा..." न कह सके।

Shakun said...

AAP KAHNA KYA CHAHTEN HAI SAMAJH NAHI AAYA
SHAKUN

Anonymous said...

"तेरह" और "तेरा" का wordplay बढ़िया है। उसे गुरू नानकजी की "तेरा, तेरा" कहने वाली साखी से जोड़ना अच्छा लगा।

Anonymous said...

There was a time when Guru Nanak worked as a storekeeper, a job he loved because it involved giving without taking anything in return.

If Nanak, when weighing out provisions, went as far as the number thirteen--
*tera*--he used to pause and several times repeat the word--which also means
'Thine,' that is, 'I am Thine, O Lord,'--before he went on weighing.

Anonymous said...

मैंने यह साखी कुछ ऐसे सुनी है:

गुरु नानक देवजी एक दुकान में काम करने लगे। उनका काम था अनाज तोलकर बेचना। तोलते-तोलते, एक, दो, तीन गिनते-गिनते जब तेरह तक गिनती पहुँचती तो वह "तेरा, तेरा, तेरा, तेरा..." ही दोहराने लगते थे (पंजाबी में "तेरह" को "तेरां" कहा जाता है)। कहते-कहते नानक भगवान में लीन हो जाते थे और तेरा-तेरा जपते हुए वह सारा अनाज लोगों को मुफ्त दे देते थे। दुकान के मालिक को जब पता चला तो उसने गुस्सा होकर गोदाम में अनाज गिना - हिसाब बिलकुल बराबर आया, कुछ भी कम नहीं हुआ था।

"तेरा" शब्द का भाव यह है कि हमारा अपना कुछ नहीं है, सब कुछ भगवान का है। "तेरा, तेरा" कहते हुए गुरु नानक देवजी ने भगवान् की चीज़, भगवान् के बन्दों को दे दी। सब पाने वालों की झोली भर गयी और देने वाले के यहाँ भी भगवान ने कोई कमी नहीं होने दी।