जल-प्रपात
रमणीक है
मनोहारी है
लेकिन दूर से ही अच्छा लगता है
नीला सागर
लुभाता है
बुलाता है
लेकिन तट से ही लगता अच्छा है
लहू में लथपथ
बिलबिलाता बेटा
जन्म के वक़्त ही लगता अच्छा है
प्रतिद्वंदी हो
या प्रतिपक्षी नेता
मरने के बाद ही लगता अच्छा है
क्या अच्छा है
और क्या बुरा
सब समय-स्थान के साथ बदलता रहता है
16 जून 2013
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
सत्यवचन!
लेकिन मन में सवाल उठा कि सब कुछ दूर से अच्छा लगता है - जल-प्रपात, नीला सागर, इंद्रधनुष - पर कविता का शीर्षक है "दूर रह कर न करो बात". शीर्षक होना चाहिए: "दूर रह कर ही करो बात" हैना राहुलजी ?
Not agree with some of lines those are written to make flow....not for any meaning.
Sakhajee.blogspot.in
"क्या अच्छा है
और क्या बुरा
सब समय-स्थान के साथ बदलता रहता है"
बात सच है कि समय के साथ हमारी पसंद-नापसंद बदल जाती है। किसी की तरफ हमारी feelings उनके दूर जाने से या पास आने से कभी-कभी कम हो जाती हैं या और भी intense हो जाती हैं। ।
इस कविता से मुझे आपकी कविता "बहुत दिन हुए एक कविता लिखी थी" याद आई जो मुझे अच्छी लगती है। उसकी कुछ lines यही बात कहती हैं:
"बहुत दिन हुए एक कविता लिखी थी
जिसमें मुझे एक सूरत दिखी थी
आज देखा तो कुछ भी नहीं है
अक्षर हैं, हस्ताक्षर नहीं है
शीर्षक सही, तिथि भी वही है
मन की लेकिन वो परिस्थिति नहीं है"
सच बात यही है कि बदलाव बाहर नहीं होता, समय और स्थान के साथ हमारे अंदर होता है। हम बदल जाते हैं, हमारे मन की परिस्थिति बदल जाती है और सब कुछ अलग लगने लगता है।
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