Tuesday, March 4, 2014

मैं जनता हूँ

मैं विनीत को वेंकट
और मेघा को उषा कहता हूँ
नामों का क्या?
नाम बदलता रहता हूँ

कहने को है
मेरी याददाश्त कच्ची
मैं रोज़ एक नया
फ़लसफ़ा गढ़ता हूँ

जीतेगा ये
या जीतेगा वो
सम्भावनाएँ सबकी
मैं रखता हूँ

ये भी सही है
और वो भी सही
सम-भावनाएँ सबकी तरफ़
मैं रखता हूँ

मैं जनूँ
या ना जनूँ
कहनेवाले कहते
मैं जनता हूँ

4 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

कविता की lines पढ़ते ही सबसे पहले यह गाना याद आया: :)

"कितने लोगों से मैं मिलकर भूल जाता हूँ
मेरी आदत है अक्सर मैं भूल जाता हूँ
देखा फिर कुछ भूल गया मुझ्को याद दिलाना
मेरा क्या नाम है
अन्जाना..."

"सम्भावनाएँ" और "सम-भावनाएँ" - सुन्दर शब्द और बढ़िया wordplay!

"जनूँ" और "जनता" funny हैं!