Sunday, August 24, 2014

अभिषेक

नहाना - एक प्राईवेट क्रिया है
उसे पब्लिक बना दिया गया है
कर्मकाण्ड के पण्डितों ने
क़हर ढा दिया है

घर की बहू-बेटियाँ
जिनकी नज़रें
तौलिया लपेटे पुरूष को देखकर ही
शर्म से झुक जाती हैं
आज
भगवान के वस्त्र उतार कर
उन्हें
दूध-दही-घी-शहद से नहला रहीं हैं

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अब तुम
तय कर ही लो
कि
ये मूर्ति है
या ईश्वर?

दो मिनट के लिए
इसके सामने
नतमस्तक हो जाते हो
और फिर
इसी के ईर्द-गिर्द
शराब पीते हो
जोक्स सुनाते हो
ठहाके लगाते हो

क्यूँ ज़रूरी था
इन्हें माला पहनाना
धूप देना
अगरबत्ती लगाना
फल-फूल-मेवा चढ़ाना?

24 अगस्त 2014
सिएटल । 513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

Title पढ़कर लगा Abhishek Bachchan की कोई news होगी शायद! :)

यह पत्थर हैं या ईश्वर? मुझे लगता है बात मन की भावना की है। जब मन में ईश्वर का ध्यान जगा होता है तो मूर्ती में भगवान की presence लगती है, तस्वीर में इश्वर का रूप दिखता है। जब मन कहीं दूसरी जगह चला जाता है, किसी और चीज़ में व्यस्त हो जाता है, तो सामने सिर्फ एक पत्थर रह जाता है।

घर की बहू-बेटियाँ घर में बच्चों को प्यार से नहलाती हैं। अगर मन में motherliness जागे और भगवान को बाल रूप में सोचें, तो हम उन्हें स्नेह से नहला सकते हैं। अगर उन्हें किसी और रूप में सोचें तो यह possible नहीं है।

बात यही है कि हम ईश्वर को किस भाव से देखते हैं और उस समय मन उन पर focussed है या नहीं।