Wednesday, August 6, 2014

सब साफ़ नज़र आता है

वो चाँद था या बादल
कुछ समझ नहीं पाया मैं



दिन के उजाले में
अक्सर ऐसा धोखा हो जाता है



रात के अँधेरे में
सब साफ़ नज़र आता है



कौन देता है रोशनी
कौन दिलासा मन को
और कौन हवा के साथ
अपना रुख बदल लेता है



सब साफ़ नज़र आता है

6 अगस्त 2014
सिएटल | 513-341-6798

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2 comments:

Anonymous said...

"कौन देता है रोशनी
कौन दिलासा मन को
और कौन हवा के साथ
अपना रुख बदल लेता है

सब साफ़ नज़र आता है"

बात सच है - हम सोचते हैं कि हर चीज़ दिन में साफ़ दिखती है, रात में नहीं। मगर कुछ चीज़ें साफ़ तभी दिखती हैं जब आस-पास अँधेरा होता है। इसी तरह रिश्तों की सही पहचान भी तभी होती है जब दुखों की रात आती है। "चलो अच्छा ही हुआ हमने सच सुन लिया" - यही समझना चाहिए कि अँधेरा भी एक blessing ही है।

Anonymous said...

कविता की date "8/6/14" interesting है: 8 + 6 = 14 :)