Thursday, January 15, 2015

मेरी हेयर स्टाईल



जब बाबूजी गुज़र गए
तो मैंने सोचा
कुछ ऐसा करूँ
कि उनकी याद बनी रहे

उनके जूते पहनने चाहे
और पहने भी
लेकिन
थोड़े ही दिनों में
वे फट गए

कुछ कुर्ते भी पहने
लेकिन वे भी
डील-डोल या
मौसम की नज़ाकत के कारण
उतर गए

फिर सोचा
जो थोड़े बहुत बाल बचे हैं
उन्हें ही
उनके जैसा काढ़ लूँ
बिना मांग के
सारे बाल पीछे कर लिये

इसी बहाने उन्हें
दिन में दो-चार बार
याद कर लेता हूँ
वरना
अब तो चार तारीख भी आती है
तो ऐसे जैसे कि कोई और ही तारीख हो
न कोई पूजा-पाठ
न कोई दान-पुण्य

गाहे-बगाहे
उनके साथ खींची तस्वीरे ज़रूर देख लेता हूँ
तस्वीरों को देख के लगता है
जैसे वो कहीं गए ही नहीं
क्यूँ?
क्योंकि
जब वे थे तब भी नहीं थे
मेरी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थे

- बच्चों का स्कूल
- मेरा दफ़्तर
- नाम के तीज-त्योहार
- कुछ छोटी-मोटी गोष्ठियाँ
इन सबमें
उनकी कोई भूमिका नहीं थी

जब थे तब नहीं थे
आज न हो कर भी हैं
मेरी हेयर स्टाईल में

---------

भागते-दौड़ते एन-आर-आई को
देख कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में
साबुत बचा न कोय

15 जनवरी 2015
सिएटल । 513-341-6798

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10 comments:

Anonymous said...

कविता दिल को छू गयी। आपने ठीक कहा कि हम दूर रहकर अपनी daily life के कामों और मिलने वालों पर ही focus कर पाते हैं। जो साथ नहीं हैं उनकी सिर्फ यादें ही हैं। जाने वालों को हम रोक नहीं सकते, वापस नहीं ला सकते, बस उनके साथ गुज़ारे हुए वक़्त को याद कर सकते हैं, उनकी बातें याद कर सकते हैं , उनकी अच्छाईयाँ याद कर सकते हैं , उनके प्यार को याद कर सकते हैं। आपने बाऊजी के जूते पहने, कुर्ते पहने, और अब उनके जैसा hairstyle बनाया है - यह बहुत ही sweet tribute है बाऊजी को। वो जहाँ भी हैं, वहां से आपको देख कर ज़रूर मुस्कुरा रहे होंगे।

Onkar said...

सार्थक रचना

कविता रावत said...

कुछ न कुछ पहचान लेकर हम पैदा होते हैं अपनों की जो हमेशा हमारे साथ रहती हैं .....इस संसार में जो कुछ पहना ओढ़ा खाया-पिया कमाया-धमाया सब बदलता है लेकिन अपनों की पहचान नहीं
बहुत बढ़िया ..

Pratibha Verma said...

सार्थक रचना...

Rahul Upadhyaya said...

Comment on email:

// जब थे तब नहीं थे
आज न हो कर भी हैं
मेरी हेयर स्टाईल में




मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति, राहुल जी।

Rahul Upadhyaya said...

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जीवन की यही रफ़्तार है
सदा बांधती है बंधनों में

फिर उन्मुक्त हो न जाने कहाँ

उड़नछू हो जाती है ।




जब थे तब नहीं थे
आज न हो कर भी हैं-------


स्मृतियों के झरोखों से पुष्पार्पण

नमन

सादर

Rahul Upadhyaya said...

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आ० राहुल जी आपकी मन:स्िथिति दर्शाती चा चारों ही कविताओं को पढ़ मन द्रवित हो उठा।

धन्यवाद

Rahul Upadhyaya said...

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आदारनिय राहुल जी
आँखे नम हो गई .

Rahul Upadhyaya said...

Comment on email:

Rahul ji
any reader can understand the mental agony you are passing while writing these lines.

This is the

चिता की समिधा के साथ देर तक नहीं बुझते थे रिश्ते
अब एक बटन दबाया और राख भी भाप रिश्ता भी भाप
बाद में चुपचाप अश्रू बहाने वाले भी
कंधा बढ़ा थपथपा देने वाले भी
किताबों में ही मिल जाएँ तो बड़ी बात है
अब समय बदला नहीं तो किसके पास है

Rahul Upadhyaya said...

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Rahul Ji,

Thank you very much for sharing your these heart touching poems. These reflect the mind set of most of us.

Congratulation for your vivid presentation.