Wednesday, August 17, 2016

महके फूल तो महकती फ़िज़ा भी है

महकें फूल तो महकती फ़िज़ा भी है
दहकें बदन तो सुलगती निशा भी है

हर तरफ़, हर जगह, है इश्क़ की बू
है ख़ुशी भी मगर कुछ गिला भी है

ऐसा नहीं कि मैंने इश्क़ किया नहीं 
कभी किसी को ख़त लिखा भी है

सब के सामने, सब कुछ कैसे कह दूँ?
तन्हाई में ख़ुद से वार्तालाप किया भी है

मान्यताएँ बदलें, या न बदलें
यदाकदा ईश्वर का नाम लिया भी है

17 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: