Monday, August 8, 2016

चाहे कितना भी दूर हो


चाहे कितना भी दूर हो
चाँद आसपास ही लगता है
ये घर हो या वो घर हो
हर घर की खिड़की से
झाँकता रहता है

हम देखते हैं इसे
ये देखता है हमें 
रिश्ता कोई जाना
पहचाना लगता है

जानते हैं कि इसे हम 
अपना न बना पाएँगे 
फिर भी ये कहाँ
पराया लगता है

न समय का है पाबंद
न देता है रोज़ हाजरी
फिर भी बेसहारों का
सहारा लगता है

तुम भी एक दिन दूर के चाँद हो जाओगे
तब और भी क़रीब हो जाओगे
जबकि आज खींचा-खींचा सा
हमारा याराना लगता है

8 अगस्त 2016
सिएटल । 425-445-0827



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